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________________ हपञ्चमम् । ] भाषाटीकासमेतः । सूतो देवसहो देवसहा दण्डोत्पलौषधौ । परिग्रहः परिजने पत्त्यां स्वीकारशापयोः ॥ ३० ॥ मूलेsपि परिबर्हस्तु राजयोग्ये परिच्छदे | परीवाहो जलोच्छ्रासे भूपालोचितवस्तुनि ॥ ३१ ॥ पितामहः पितुस्ताते ब्रह्मण्यपि पितामहः । प्रतिग्रहः स्वीकरणे सैन्यपृष्ठे ग्रहान्तरे ॥ ३२ ॥ महद्भ्यो विधिवद्देये तहे च पतइहे । वरारोहा कटौ नार्या पुंसि साद्यवरोहयोः ॥ ३३ ॥ महासहा मासपर्ण्यामम्लानेऽपि महासहाः । हपश्ञ्चमम् । पितामहे ऽपि तातस्य विधौ च प्रपितामहः ॥ ३४ ॥ इति विश्वलोचनेऽपराभिधानायां मुक्तावल्यां हान्तवर्गः ॥ देवसह -- सूत (सारथि), देवलहावृक्षविशेष डानिकुनिशाक ( वंगभाषा ) ( स्त्री० ) परिग्रह - परिजन ( परिवार ), पत्नी, अंगीकार, शाप ॥ ३० ॥ मूल, (जड़ ) ( पुं० ) परिबर्ह - राजा के योग्य द्रव्य, उपस्कर, ( पुं० ) परीवाह - जलनिकसनेका मार्ग, राजा के योग्य वस्तु, (पुं० ) ॥३१॥ पितामह - पिताका पिता ( दादा ), ब्रह्मा, (पु० ) प्रतिग्रह - अंगीकार करना, २६ सेनाकी ४०१ पीठ, ग्रहभेद ॥ ३२ ॥ बड़ोंको विधिपूर्वक देनेयोग्य द्रव्य, उसी द्रव्यका विधिपूर्वक ग्रहणकरना, पीकदान, (पुं० ) वरारोहा - कटि (कमर ) स्त्री, (स्त्री०) वरारोह - घोड़ेका सवार, चढना, ( पुं० ) ३३ ॥ | महासहा - भाषर्पणी, कटैया, (स्त्री०) हपंचम | प्रपितामह-पिताका पितामह ( परदादा ), ब्रह्मा, (पुं० ) ॥ ३४ ॥ इस प्रकार विश्वलोचनमें हान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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