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विश्वलोचनशकोश:
इला गोभूमिपीयूषे भारत्यां सौम्ययोषिति । ओलस्तु सूरणे पुंसि स्यादार्द्रे त्वभिधेयवत् ॥ ४ ॥ कलस्तु मधुराव्यक्तशब्देऽजीर्णे कलं सिते । कला तु षोडशांशे स्यादिन्दोरप्यंशमात्रके ॥ ५ ॥ मूलार्थवृद्ध शिल्पादौ कलनाकालभेदयोः । कलिरन्त्ययुगे कन्दे कन्दले सुभटे पुमान् ॥ ६॥ कालस्तु समये मृत्यौ महाकाले यमे शितौ ॥ कृष्णे त्रिष्वथ काली स्यात्कालिकामातृभेदयोः ॥ ७ ॥ गौर्या नवाम्बुदानी क्षीरकीटापवादयोः | काला तु कृष्णत्रिवृत्ति नीलीमञ्जिष्ठयोरपि ॥ ८ ॥ कीला कफोणिघाते स्यात्कीले शङ्कौ च कीलवत् । कुलं सजातीयगणे गोत्राङ्गगृहनीवृति ॥ ९ ॥
इला - गौ,
भूमि, अमृत, वाणी | काल - समय, मत्यु, महाकाल, धर्म
बुधग्रहकी स्त्री,
( स्त्री० )
राज, नीला रंग, ( पुं० ) काला रंगवाला (त्रि०) ओल-जमीकंद ( पुं० ) गीला (त्रि०) काली - काला रंगवाली, मातृभेद ( (देवी भेद ), ( स्त्री० ) ॥ ७ ॥ गौरी, नवीन मेघकी घटा, दुग्धका कीट, निंदा, (स्त्री० )
॥ ४ ॥
( सरखती ),
कल- मधुर और अप्रकट
भाग,
( पुं० ) अजीर्ण ( त्रि० ) कल - वीर्य ( न० ) कला - सोलहवाँ चंद्रमा की कला, ॥ ५ ॥ मूलद्रव्यकी वृद्धि, शिल्पआदि, कलना ( संख्याजोडना ), कालभेद, (स्त्री० ) कलि-कलियुग, कन्द, कंदल (नवीन अंकुर ), योद्धा, (पुं० ) ॥ ६ ॥
[ लान्तवर्गे
शब्द,
काला - काली निसोथ, नीली, मँजीठ, ( स्त्री० ) ॥ ८ ॥ कीला - कील-कोंहनीसे
मारना, अग्नितेज, शंकु (कीला), (स्त्री० पुं०) कुल - सजातीयसमूह, गोत्र, शरीर, घर, देश, ( न० ) ॥ ९ ॥
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