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विश्वलोचनकोश:
शर्वरी तु त्रियामायां हरिद्रायोषितोरपि । श ( ब ) वरो म्लेच्छ भेदेऽपि शवरः शङ्करे जले ॥ २२३ ॥ शक्करस्तु बलीवर्दे छन्दोभेदे तु शाक्करम् । शाङ्करिर्विघ्नपे स्कन्दे शारीरो देहजे वृषे ॥ २२४ ॥ शार्क दुग्धफेने स्याद्वाच्यवच्छ करावति । शावरं त्वन्तमसे घातुके त्रिषु शार्वरम् ॥ २२५ ॥ शालारं स्याद्धस्तिनखे सोपाने पक्षिपञ्जरे । शावरो लोध्रवृक्षे स्यात्तथा पापाऽपराधयोः ॥ २२६ ॥ शावरी शूकशिम्ब्यां च तद्भवे त्रिषु शावरम् । शिखरं शैलवृक्षाग्रे कक्षापुलककोटिषु ॥ २२७ ॥ पक्कदाडिमबीजाभमाणिक्यशकलेऽपि च । शिलीन्ध्रस्तु पुमान्मीनभेदे वृक्षप्रभेदयोः ॥ २२८ ॥
खडंजा,
शर्वरी-रात्रि, हलदी, स्त्री ( स्त्री० ) | शालार-पुरदरवाजाका शव (ब) र - म्लेच्छभेद, महादेव, जल पैडी, पक्षीका पिंजरा ( न० )
( पुं० ) ॥ २२३ ॥ शक्कर - बैल (पुं० ) शाक्कर- छन्दोभेद ( न० शांकरि-गणेश,
( पुं० )
शारीर-शरीरसे उत्पन्न होनेवाला (त्रि ० ) बैल ( पुं० ) ॥ २२४ ॥ शार्कर - दूध के झाग ( पुं० ) शर्करा
•)
स्वामिकार्त्तिक,
( डलियों ) वाला देश ( त्रि० ) शार्वर - अंधकार, ( न० :) शार्वर - जीवोंको मारनेवाला (त्रि०)
॥ २२५ ॥
[ रान्तवर्ग
शावर - लोध-वृक्ष, पाप, अपराध, ( पुं० ) ॥ २२६ ॥ शावरी-कौंछ, ( स्त्री० ) शावर - कौंछकी फली आदि ( त्रि० ) शिखर पर्वत या वृक्षकी चोटी, घुंघुची, मुरदासंग या हरताल कोटि (असवरग ) ( न० ) ॥ २२७॥ पके हुए अनारके बीजोंके तुल्य माणिक्यका टुकडा ( न० •) शिलीन्ध्र - मीन ( मच्छी ) भेद, वृक्षभेद (पुं० ) ॥ २२८ ॥
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