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विश्वलोचनकोशः- इरान्तवर्गेशरयन्त्रे दन्तुरस्तु विषमोन्नतदन्तयोः । दहरो मूषिकायां स्यात्स्वल्पभ्रातरि बालके ॥ १६३ ।। दईरः शैलभेदे स्यात्किञ्चिद्भमे तु वाच्यवत् । दर्दुरो भेकघनयोर्वाद्यभाण्डाद्रिभेदयोः ।। १६४ ॥ दर्दुरा हरकान्तायां ग्रामजाले तु द१रम् । दासेरो दासिकापत्ये त्रिषु पुंसि क्रमेलके ॥ १६५ ॥ दीनारो नाणके स्वर्णमानभेदेऽपि दृश्यते । दुर्द्धरं त्रिषु दुर्भार्ये पुमांस्तु ऋषभौषधौ ॥ १६६ ॥ दैत्यारिस्त्रिदिवे विष्णो द्वापरः संशये युगे । धूसरस्तु खरे खल्पपाण्डुरे तद्वति त्रिषु ॥ १६७ ॥ नरेन्द्रः पृथिवीनाथे विषवैद्येऽपि वार्तिके । गजादौ सरलादयोर्निष्कलायां च नर्मरा ॥ १६८ ॥ शरयंत्र, (पुं० )
| दीनार-नाणा ( द्रव्यमात्र), वर्णमादन्तुर-उँचानीचा, उँचे दाँतोंवाला नभेद, (पुं० ) (पुं० )
दुर्द्धर-दुःखसे धारने के योग्य,(त्रि.) दहर-छोटा मूसा, छोटा भ्राता, बालक ऋषभ-औषधि ( पुं० ) ॥१६६॥ (पुं० ) ॥ १६३ ॥
दैत्यारि-देवता, विष्णु, (पुं० ) दर्दर-पर्वतभेद (पुं० ) कुछेक फूटा- द्वापर-संदेह, द्वापर युग (पुं० )
हुवा पात्र आदि (त्रि.) | धूसर-गर्दभ, थोड़ापीला रंग, (पुं०) दर्दुर-मेंडक, मेघ, वाद्यभेद, पर्वत- थोड़ापीलारंगवाला ( त्रि.) १६७
भेद, (पुं० ) ॥ १६४ ॥ नरेन्द्र-राजा, विषवैद्य, वृत्ति (आ. दर्दुरा-पार्वती, (स्त्री०) । जीविका ) देनेवाला, हस्तीआदि, दर्दुर-ग्रामजाल, (न० )
(पुं० ) दासेर-दासीकी संतान (त्रि. )ऊँट नर्मरा-त्रिधारा, गुफा, कलारहिता (पुं०)॥ १६५ ॥
(स्त्री.) ॥ १६८॥
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