________________
२९८ विश्वलोचनकोशः
[रान्तवर्गेकर्परस्तु कपाले स्यादस्त्रभेदकटायोः । कररः खगभित्तिश्च करीरः क्रकचार्थकः ।। १२६ ।। वंशाङ्कुरे करीरोऽस्त्री पुंसि वृक्षान्तरे घटे। करीरी चीरिकायां च दन्तमूले च दन्तिनाम् ॥ १२७ ॥ कर्करी तु गलन्त्यां स्यात्कर्करो दर्पणे दृढे । कबुरो राक्षसे पापे जले हेम्नि च कबुरम् ।। १२८ ॥ कर्बुरा कृष्णवृन्तायां कर्बुरं शबलेऽन्यवत् । कबरी तु शिवायां स्याद्वयाः पुंस्येव कव॒रः ।। १२९ ॥ कलत्रं भूभुजां दुर्गास्थानेऽपि श्रोणिर्भाययोः । कान्तार उपसर्गादौ कोशकारान्तरे पुमान् ॥ १३० ॥ कान्तारं दुर्गमार्गेऽपि महारण्येऽपि न स्त्रियाम् । कावेरी तु नदीभेदे हरिद्रापण्ययोषितोः ।। १३१ ॥
कर्पर-कपाल, अस्त्रभेद, कड़ाह, (पुं०) कर्बुरा-पाडर-वृक्ष या मघवन, (स्त्री०) करर-पक्षीभेद, (पुं०)
कर्बुर-कबरारंगवाला (त्रि.) करीर-करोंत, ॥१२६॥ वंशका अंकुर, कर्वरी-गीदड़ी, ( स्त्री० )
(पुं० न०) कैर-वृक्ष, घट, (पुं०) कर्बुर-बधेरा ( पुं० ) ॥ १२९ ॥ करीरी-ची, ची, बोलनेवाला पंखों- कलत्र-राजाओंका दुर्ग (किलाआदि)
वाला कोट, हस्तियोंके दाँतोंका स्थान, कमर, स्त्री, ( न०) ___ मूल, (स्त्री०)॥ १२७ ॥ कान्तार-उत्पातआदि, कोशकारभेद, कर्करी-चावलआदिको धोनेका पात्र, (पुं० ) ॥ १३० ॥ (स्त्री० )
कान्तार-कठिनमार्ग, बड़ा वन, कर्कर-दर्पण ( शीशा ), दृढ, (पुं०) (पुं० न०) कर्बुर-राक्षस, पापी, (पुं०) कावेरी-नदीभेद, हलदी, वेश्या कर्बुर-जल, सुवर्ण ( न० ) ॥१२८॥ (स्त्री० ) ॥ १३१ ॥
"Aho Shrutgyanam"