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________________ २७६ विश्वलोचनकोशः- [ यान्तवर्गेस्थूलोच्चयो मतङ्गानां स्थान्मध्यमगतेऽपि च । हिरण्मयः स्वर्णमये लोकधात्रन्तरे पुमान् ॥ १३९ ।। यपञ्चमम् । कालानुसायं कालेये शैलेये शिंशपाद्रुमे । मतं तु दुग्धतालीयं दुग्धाने दुग्धफेनके ।। १४० ॥ स्यादुग्धचमसेऽप्येतत्खण्डकीटे पुमानयम् ।। त्रिषु प्रवचनीयं स्यात्मवाच्येऽपि प्रवक्तरि ॥ १४१ ॥ वृषाकपायी श्रीगौरीजीवन्तीपु शतावरौ । यषष्ठम् । प्रत्युद्गमनीयमुपस्थेये धौतांशुकद्वये । विष्वक्सेनप्रिया तु स्यात्कमलात्रायमाणयोः ।। १४२ ॥ इति विश्वलोचने यान्तवर्गः ॥ हस्तियोंका मध्यम गमन, (पुं० ): वृषाकपायी-लक्ष्मी, गौरी, जीवंती, हिरण्मय-सुवर्णमय, लोकधातृ शतावरी, ( स्त्री. ) ( ब्रह्मा ) ( पुं० ) ॥ १३९॥ यषष्ठ । यपंचम। कालानुसार्य-काल में होनेवाला प्रत्युद्गमनीय-आगेसे उठनेके योग्य शिलाजीत, सीसम-वृक्ष, ( न०) ___ या धौतवस्त्रजोड़ा (न.) दुग्धतालीय-दुग्ध-आम्र, दुग्धका विष्वक्सेनप्रिया-लक्ष्मी,त्रायमाणफेन ( झाग) ॥ १४० ॥ दुग्ध- औषधि, ( स्त्री० ) ॥ १४२ ।। पीनेका पात्र, (न०) शक्करका इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें कीट (पुं० ) प्रवचनीय-कहनेके योग्य, कहने यान्तवर्ग समाप्त हुआ ॥ वाला, (त्रि.) ॥ १४१॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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