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विश्वलोचनकोश:
गुह्यको गोपिते यक्षे गृह्यकश्छे कनिघ्नयोः । गैरिकं धातुभेदे स्याद्धातुमात्रे च काञ्चने ॥ ७३ ॥ गोरङ्कः पक्षिजातौ च नग्नके श्रुतिपाठके । गोलको मणिके जाराद्विधवातनये गुडे ॥ ७४ ॥ ग्रन्थिस्तु करीरेस्यादैवज्ञे गुग्गुलुमे । माद्रेयेप्यद्वयोर्ग्रन्थिपर्णीपिप्पलिमूलयोः ॥ ७५ ॥ ग्राहको घातिविहगे ग्रहीतरि तु वाच्यवत् । चटकः कलर्बिकः स्यात्तत्पुत्रीयोषितोः स्त्रियाम् ॥ ७६ ॥ चतुष्की मशकयौ यष्टिकावेश्मभेदयोः । चुलुकः : प्रसृतौ च स्याच्चुलुका भाजनान्तरे || ७७ || चपकोsस्त्री पानपात्रे मधुमद्यप्रभेदयोः । चारकः पालकेऽश्वादेः स्यात्सञ्चारकबन्धयोः ॥ ७८ ॥
गुह्यक- रक्षा कियाहुवा,
योनि, ( पुं० )
यक्ष - देव- | ग्राहक - पक्षी मारनेवाला पक्षी, (पुं०) सर्प आदिकों का पकड़नेवाला (त्रि०) गृह्यक- पालाहुवा पक्षीआदि, अधीन चटक - चिडापक्षी, (पुं० ) पुरुष आदि (पुं० ) गैरिक- धातुभेद ( गेरू ), धातुमात्र, सुवर्ण, ( न० ) ॥ ७३ ॥ गोरङ्क - पक्षिविशेष, नंगापुरुष, वंदीजनका पढना, (पुं० ) लक-गोला, जारसे उत्पन्नहुवा विधवाका पुत्र, गुड, (पुं० ) ॥ ७४ ॥
१-क - कैरवृक्ष, ज्योतिषी, गूगलकूपिक माद्रीका पुत्र, (पुं० )ग्रन्थि - ( स्त्री / गांडर दूब ), पीपलामूल, कूलः– बँव ॥ ७५ ॥
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[ कान्तवर्गे
चटिका चिडाकी पुत्री और स्त्री ( स्त्री० ) ॥ ७६ ॥ चतुष्की-मसैरी - पलंगपरताननेकी,
छडी, एकप्रकारका पत्थर (स्त्री० ) चुलुक - प्रसृति ( पस्सो) (पुं० ) चुलुका - पात्रविशेष (स्त्री० ) ॥ ७७ ॥ चषक - जलआदिपीने का पात्र ( प्याला),
शहद, मदिराभेद, ( पुं० ) चारक - घोडा आदिका चरानेवाला, राजाका गुप्तदूत, संचारकरनेवाला, बन्ध, (पुं० ) ॥ ७८ ॥
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