________________ 232 विश्वलोचनकोशः [पान्तवर्गेपिण्डपुष्पमशोके स्याज्जवापुष्पेऽपि पंकजे / बहुरूपः स्मरहरे स्वभूसरटधूनके // 28 // मेघपुष्पं तु पिण्डाभे जलनादेययोरपि / विप्रलापो विरोधोक्तावपार्थवचनेऽपि च // 29 // बीजपुष्पं मरुबके मतं दमनकद्रुमे / वृकधूपस्तु सरलद्रवकृत्रिमधूपयोः // 30 // वृषाकपिमहादेवे कृष्णपावकयोरपि / हेमपुष्पमशोके स्याज्जवापुष्पेऽपि चम्पके // 31 // पपञ्चमम् / भवेच्चामरपुष्पं तु काशे चूते च केतके / / 32 / / इति विश्वलोचने पान्तवर्गः // पिंडपुष्प-अशोक-वृक्ष, जवापुष्प,। वृषाकपि-महादेव, कृष्ण, अग्नि कमल, ( न०) (पुं०) बहुरूप-कामदेव, महादेव, विष्णु, हेमपुष्प-अशोक 7 वृक्ष, जबापुष्य, गिरगट, राल-वृक्ष, (पुं०) // 28 // चंपा, (न. ) // 31 // मेघपुष्प-मेघ, जल, नदीमें होने पपंचम / वाला (न.) विप्रलाप-विरोधसे वचन, निरर्थक अमरपुष्प-काश, आँब, केतकीवचन, (पुं०)॥ 29 // पुष्प, ( न० // 32 // बीजपुष्प-मरुवा, दौना, ( न. ) ! इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें वृकधूप-सरलवृक्षका गोंद, बनाई पान्तवर्ग समाप्त हुवा // हुई धूप, (पुं० ) // 30 // - "Aho Shrutgyanam"