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पद्वितीयम् । ]
भाषाटीकासमेतः ।
जायानुजीवी भरते दुर्गताखिलयोर्बके ।
मतः सहस्रवेधी तु रामठे चाम्लवेतसे ॥ २५२ ॥
इति विश्वलोचने नान्तवर्गः ॥
अथ पान्तवर्गः । पैकम् ।
पो वाते पा तु पाने स्यात्पास्तु पातरि वाच्यवत् ॥ १ ॥ पद्वितीयम् ।
कल्पो ब्राह्मदिने न्याये प्रलये विधिशान्तयोः । कूपोऽन्धुगर्त्तमृन्मानकूपके गुणवृक्षके ॥ २ ॥ कृपा दयायां व्यासे तु कृपो भारतपूरुषे । खष्पः क्रोधे बलात्कारे गोपो गोपालभूपयोः ॥ ३॥
जायानुजीविन्-नट, दुर्गत ( दरिद्र ),
बगला- पक्षी, (पुं० ) सहस्रवेधिन्- हींग, अम्लवेत, (पुं०)
॥ २५२ ॥
इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें नांतवर्ग समाप्त हुवा ॥
अथ पान्तवर्ग | पैक 1
प - वायु (पुं० )
पा-पीना ( स्त्री० )
पा - रक्षाकरनेवाला (त्रि० ) ॥ १ ॥
२२७
पद्वितीय ।
कल्प - ब्रह्माका दिन, न्याय, प्रलय, fafa, ma, ( j• ) कूप - कुवाँ, खड्डा, मिट्टीका प्रमाण, निister खड्डा, नौकाका स्तंभ, (पुं०)
॥ २ ॥
कृपा-दया, ( स्त्री० > कृप - व्यास, कृपाचार्य, (पुं० ) खष्प- क्रोध, बलात्कार, (पुं० ) गोप-गोपाल, राजा, ॥ ३ ॥ ग्रामोंके
समूहका अधिकारी, गोष्ठ ( गोस्थाa) का अधिकारी, कुछकरनेवाला, ( पुं० )
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