________________
विश्वलोचनकोश:करकोsस्त्री करके स्वात्कुण्ड्यां चाथ पुमान्खगे । कुसुम्भे दाडिमे हस्ते करका तु घनोपले ॥ ४९ ॥ करङ्कः सस्यसन्त्यक्तनालिकेराऽस्थिमस्तके | कर्णिका कर्णभूषायां गुवाकादिच्छटांशके ॥ ५० ॥ करिहस्ताग्रभागे च करमध्याङ्गुलावपि । नलिनीबीजकोशे च कुट्टिन्यामपि कुत्रचित् ॥ ५१ ॥ कलङ्कोऽङ्के कालायसमले दोषाऽपवादयोः । कावृकः कृकवाकौ स्यात्पीतमस्तककोकयोः ॥ ५२ ॥ कामुकः कामिनि ख्यातोऽशोकवृक्षाऽतिमुक्तयोः । कारकः कर्तरि ज्ञेयः कर्मादौ कारकं मतम् ॥ ५३ ॥ कारिका विवृतिश्लोके यातनायां कृतावपि । नटस्त्रियां नापितादिशिल्पे क च कारिका ॥ ५४ ॥
हरी, मस्तककी खोपरी ( पुं० ) कर्णिका - कर्णका आभूषण, सुपारी आदिका टुकडा ॥ ५० ॥
करक-माथे की खोपरी, कँडी या | कावृक-मुरगा पक्षी, पीतमस्तक पक्षी कमंडलु, (पुं० न० ) पक्षिविशेष, ( कावरी ), चकवा पक्षी ( पुं० ) कसुंभा अनार, हाथ, ( पुं० ) करका - ओला ( स्त्री० ) ॥ ४९ ॥ करंक
॥ ५२ ॥
- कडब डांठला, नालीरकी डो- | कामुक - कामी पुरुष, अशोक वृक्ष, माधवीलता, (पुं० )
हाथी की सूँडका अग्रभाग, मध्यमाअंगुली, कुमोदनीका बीजकोश, कुट्टिनी स्त्री ( स्त्री ० ) ॥ ५१ ॥ कलङ्क चिह्न, लोहेका मल, दोष, निन्दा, (पुं० )
[ कान्तवर्गे
-
कारक-कुछभी करनेवाला पुरुष, (पुं०) कर्मआदि कारक ( न० ) ६ ॥ ५३ ॥
" Aho Shrutgyanam"
कारिका - व्याख्याकरनेवाला-श्लोक, पीडा, कृति, नटकी स्त्री, नाईआदिकी कारीगरी, कुछभी करनेवाली स्त्री, ( स्त्री० ) ॥ ५४ ॥