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________________ नचतुर्थम् । ] भाषाटीकासमेतः । समापन्नं वधे क्लीबं समाप्तौ तु समापनम् । समापनं परिच्छेदे समाधाने च मारणे ॥ २१६ ॥ समादानं समीचीनग्रहणे नित्यकर्म्मणि । समुत्थानं मतं रोगनिर्णयेऽपि समुद्यमे ॥ २१७ ॥ संमूर्छनमभिव्याप्तौ संमूर्छायां च मोहने । संवाहनं तु भारादेर्वाहनेऽप्यङ्गमर्दने ॥ २१८ ॥ स्यात्संवदनमालोचे संवादे च वशीकृता । सरोजिनी तु पद्मिन्यां सरोजे च सरोवरे ॥ २१९ ॥ सामयोनिस्तु सामोत्थे मातशे परमेष्ठिनि । सामिधेनी ऋचि प्रोक्ता सामिधेनी समिध्यपि ॥ २२० ॥ मतं सारसनं काच्यामुरस्त्रे च तनुत्रिणाम् । सुकर्मा योगभेदेऽपि सुकर्मा देवशिल्पिनि ॥ २२१ ॥ समापन समाप्ति, परिच्छेद ( ग्रंथ- | संवदन- देखना, संवादकरना, वश में विभाग ), समाधान, मारना, ( न० ) ॥ २१६ ॥ करना, (न० ) सरोजिनी - कमलिनी, कमल, सरोवर, ( स्त्री० ) ॥ २१९ ॥ सामयोनि-सामसे उत्पन्न हुवा, हस्ती, समादान - अच्छीतरह ग्रहणकरना, नित्यकर्म ( न० ) समुत्थान- रोगका निर्णय, अच्छेप्र• कारसे उद्यम, ( न० · ) ॥ २१७ ॥ संमूर्छन- अभिव्याप्ति, संमूर्छा, मोहन, (न० •) संवाहन - भारआदिका वहना, अंगका मर्दन करना, ( न० )॥२१८॥ २२१ ब्रह्मा, (पुं० ) सामिधेनी-वेद ऋचा, समिधू ( पलाशी ) ( स्त्री० ) ॥ २२० ॥ सारसन - तगड़ी, शरीरकी रक्षाकरने वालोंका उरत्र, ( न० ) सुकर्मन् - एकयोग, देवनाओंका शिल्पी ( कारीगर ) ( पुं० ) ॥२२१॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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