________________
१५६
विश्वलोचनकोशः- [तान्तवर्गेअस्वाध्याये प्रतिक्षेपे निराकारे निराकृतिः। त्रिषु निस्तुषितं त्यक्ते त्वचाशून्ये लघुकृते ॥ २१९ ॥ निष्काशितो निर्गमिते धिक्कतेप्युज्झिते त्रिषु । पञ्चगुप्तस्तु चार्वाकदर्शने कमठेऽपि च ॥ २२० ॥ गताप्तचेष्टिते ज्ञाते लाभे परिगतं मतम् । परिघातः समाघाताऽऽयुधयोरथ हायने ॥ २२१ ॥ परिवर्तो विनिमये कूर्मराजे पलायने । दन्ते सप्रसवे लाक्षारक्ते पल्लवितं त्रिषु ॥ २२२ ॥ पारावतः कलरवे शैले मर्कटतिन्दुके ।। पारावती तु गोपालगीतेऽपि लवलीफले ॥ २२३ ।। पारिजातः पारिभद्रे मन्दारेऽपि च पादपे।
पाशुपतः पशुपतिदैवते बकपुष्पके ॥ २२४ ॥ निराकृति-पाटका नहीं पढना, व-परिवर्त्त-बदला, कूर्मराज, भागना,
र्जना, निकालना ( स्त्री०) (पुं० ) निस्तुषित-त्यागाहुवा, त्वचाशून्य, पल्लवित-दियाहुवा, उत्पत्तिवाला,
छोटा कियाहुवा, (त्रि०) ॥२१९॥ लाखसे रंगाहुवा, (त्रि.) ॥२२२॥ निष्काशित--निकालाहुवा, धिक्कार पारावत-कबूतर, पर्वत, मकरतें।
कियाहुवा, त्यागाहुवा, (त्रि.) दुवा, (पुं० ) पंचगुप्त-चार्वाकोंका शास्त्र, कमठ पारावती-गोपालका गीत, हरपारेव
(कछुवा ) (पुं० ) ॥ २२०॥ डीका फल, (स्त्री०) ॥२२३ ॥ परिगत-गयाहुवा के प्राप्त होनेसे | पारिजात-नींब-वृक्ष, आक-वृक्ष,
चेष्टित, जानाहुवा, लाभ, (त्रि०) कल्प वृक्ष, (पुं० ) परिघात-बहुत आघात (चोट), ह-पाशुपत-महादेव देवता है जिसका थियार, वर्ष, (पुं०)॥ २२१ ॥ वह, अगस्तका पुष्प, (पुं०)२२४
"Aho Shrutgyanam"