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विश्वलोचनकोशः- [णान्तवर्गेनिस्सरणं द्वारमुक्तिनिर्याणोपायमृत्युषु । परीरणः स्यात्कमठे दण्डे च पट्टशाटके ॥ ९८ ॥ पर्वरीणस्तु पर्णस्य शिरायां धूतकम्बले ।। पर्णवृन्तरसेऽपि स्यात् सितसौरभपर्वणोः ।। ९९ ॥ परवाणिस्तु कथितो धर्माऽध्यक्षेऽपि वत्सरे । त्रिषु स्यात्तत्परेऽभीष्टेऽप्याश्रये तु परायणम् ॥ १०० ।। पारायणं पारगतौ सम्यगासङ्गकाययोः । पीलुपी तु मूर्वायां बिम्बायामोषधीभिदि ॥ १०१ ॥ पुष्करिणी सरोजिन्यां हस्तिन्यां च जलाशये । स्यात्प्रतिपणः संस्कारेऽप्युपग्रहनिषङ्गयोः ॥ १०२ ॥ प्रवारणं निषेधे स्यात् काम्यदाने प्रवारणम् । वारबाणस्तु कवचे सर्वसन्नहनेऽपि च ॥ १०३ ॥
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निस्सरण-दरवाजा, मुक्ति, निक- पारायण-पारगति (पारगमन ), ___ लना, उपाय, मृत्यु, ( न०) अच्छीतरह संग, संपूर्णता (न०) परीरण-कछुवा, छडी, पाटकी साडी पीलुपर्णी-मूर या मोरबेल, चुरनहार,
या धोती (पुं० ) ॥ ९८ ॥ मरोरफली, औषधीभेद ( स्त्री.) पर्वरीण-पत्तेकी नसे, जूवाका कंबल, ॥१०१ ॥
पत्तोंके नाकुवोंका रस, सफेद बोल पुष्करिणी-कमलिनी (कमोदनी), औषधि, पर्व (पोरी) (पुं० ) हस्तिनी, सरोवर, ( स्त्री०)
प्रतिपण-संस्कार, उपग्रह, बाणोंका परवाणि-धर्मका अध्यक्ष (खामी), तरकस (पुं० ) ॥ १०२॥ संवत्सर (पुं०)
प्रवारण-वर्जना, यथेच्छदान, (न०) परायण-तत्पर, वांछित, आश्रय, वारबाण-कवच, अँगरखा, (पुं०)
(त्रि०)॥ १०.॥
॥ १०३ ॥
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