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________________ मेषमहोदये फाल्गुनमासे वायुविचार:-- फाल्गुनेऽतिखरो वायुति पत्राणि पातयन् । दक्षिोऽतिमृदुश्चैत्रे मेघगर्भहिताय सः ॥१०॥ हुताशन्या दीप्तिकाले ऐन्द्रः स्यादतिवृष्टये । औदीच्या धान्यनिष्पत्यै दुर्भिक्षं दक्षिणोऽनिलः ॥१०२॥ वारुणो मध्यमं वर्षमुच्चैर्वातो भयङ्करः । चतुर्दिक्षु महराते राज्ञां युद्धं प्रजाक्षयः ॥१०३ ॥ श्रीहीरविजयसूरिकृतमेघमालायां प्रोक्तम्-- रजउच्छवम्मि वाओ उत्तरी वहइ धननिप्फत्ती । पुव्वाई नीरबहुलो पच्छिमवाएण करवरयं ।।१०४॥ दक्खिण वाय दुकालो अहवा वज्जेह वाउ चउदिसो । तह लोय उवद्दवणं जुज्झइ राया खओ लोए ॥१०५॥ __ यदि फाल्गुन मास में बहुत तीक्ष्ण वायु चल कर वृक्षों के पत्र गिगवें और चैत्र मास में दक्षिण दिशा का बहुत मृदु वायु चले तो मेघ के गर्भ को हित कारक है ।। १ ० १ ॥ फाल्गुन पूर्णिमा को होली जलाने के समय पूर्व का वायु चले तो बहुत वर्षा हो । उत्तर का वायु चले तो धान्य की प्राप्ति और दक्षिण का वायु चले तो दुर्भिक्ष हो ॥ १०२ ॥ पश्चिम दिशा का वायु चले तो वर्ष मध्यम रहें, ऊर्ध्व वायु चले तो भय दायक और चारों ही दिशा का महावायु चले तो राजाओं का युद्ध और प्रजा का विनाश हो ॥ १०३ ।। श्रीहीरविजयसूरिकृत मेघमाला में कहा है कि- रजः उत्सव (होली) के दिन उत्तर दिशा का वायु चले तो धान्य प्राप्ति अच्छी हो। पूर्व दिशा का वायु चले तो बहुत वर्षा हो, पश्चिम का वायु चले तो करवरा (कहीं थोडी वर्षा कहीं वर्षा नहीं) करें ॥ १०४ ॥ दक्षिण का वायु चले तो दुश्काल हो, यदि चारों ही दिशा का वायु चले तो लोक में उपद्रव, राजामों का युद्ध और प्रजा का क्षय हो ॥ १०५ ॥ कोई ऐसा भी कहते "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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