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वाताधिकारः
श्रावणे मुख्यतः प्राच्यो नभस्ये चोत्तरोऽनिलः । वृष्टिं दृढतरां कुर्याच्छेषमासेषु वारुणः ॥ २१ ॥ चैत्रमासे वायुविचार:----
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चैत्राऽमित द्वितीयायां सर्वदिग्भ्रामकोऽनिलः । विना मेघं तदा भाद्रपदे वृष्टिस्तु भूयसी || २२ || पूर्वस्या उत्तरस्याश्च वायुश्चैत्रे सितेतरे । तृतीयायां तदा लोके सुभिक्षं प्रचुरं जलम् ||२३|| चतुर्थ्यां वृष्टियुग्वातस्तदा दुर्भिक्षमादिशेत् । चैत्रेऽसितेsपि पञ्चम्यां तादृगेव फलं भवेत् ॥२४॥ चैत्र द्वितीयादिचतुर्दिनेषु, कृष्णेऽथ पक्षे यदि पूर्ववातः । वर्षायुतो नैव शुभः सिते तु, पूर्वोत्तरोवायुरतीवशस्तः ॥ २५॥ चैत्रस्य शुक्लपञ्चम्यां वायुर्दक्षिणपूर्वयोः ।
का, भाद्रपद में उत्तर दिशा का और बाकी महीने में पश्चिम दिशा का वायु चले तो बहुत अच्छी वर्षा होती है ॥ २१ ॥
चैत मास में कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन यदि सब दिशा का वायु चले किंतु वर्षा न हो तो भाद्रपद में बहुत वर्षा होती है ॥ २२ ॥ चैत कृष्ण पक्ष में तृतीया के दिन पूर्व और उत्तर का वायु चले तो लोक में सुभिक्ष हो और जल वर्षा अधिक हो ॥ २३ ॥ चतुर्थी के दिन यदि वर्षा युक्त वायु चले तो दुर्भिक्ष होता है। इसी तरह शुक्ल (कृष्ण) पंचभी का भी यही फल जानना ॥ २४ ॥ चैत कृष्ण पक्ष में यदि द्वितीया आदि चार दिन वर्षा युक्त पूर्व दिशा का वायु चले तो शुभ नहीं होता; किंतु शुक्ल पक्ष में पूर्व और उत्तर का वायु चले तो बहुत शुभ होता है ॥ २५ ॥ चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन दक्षिण और पूर्व का वायु चले और साथ वर्षा भी हो तो उस वर्ष भादों में धान्य के त्रिगुणित मूल्य हो याने धान्य बहुत
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