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मेघमहोदये
दातुर्महेभ्यश्राद्धस्थं यत्प्राप्तं तद्विचार्यते ॥ ६०॥ सधवा सतनूजा स्त्री भिक्षादात्री शुभाय या । यहहु प्राप्यते धान्यं तन्निष्पत्तिः पुरो भवेत् ॥९१॥ नास्ति वेलेत्युत्तरेण दुर्भिक्षं भाविवत्सरे । विलम्बदाने मेघोऽपि विलम्बेनैव वर्षति ॥ ६२॥ तत्र क्लेशदर्शनेन राजविग्रहमादिशेत् । भने पात्रस्य भाण्डस्य छत्रभङ्गो विचार्यते ॥९३॥ व्यंगा वा रुदती दत्ते तदा रोगाद्युपद्रवाः । गौतमीयमिदं ज्ञानं न वाच्यं यत्र कुत्रचित् ॥६४॥ उपश्रुतिस्तद्दिने वा वर्षबोधे विचार्यते । लोको वदति यद्वाक्यं ज्ञेयं तस्माच्छुभाशुभम् ||६|| इति गौतमीयज्ञानम् । इत्येवं शकुनं विचार्य सुधिया वाच्यं फलं वार्षिक, यस्योद्बोधनतो धनं भुवि घनं सर्वार्थसंसाधनम् ।
दातार महान् श्रावक के घर जायँ और वहां से जो प्राप्त हो उसका विचार करे ॥ ६० ॥ भिक्षा देनेवाली सौभाग्यवती पुत्रवती स्त्री हो तो अगला वर्ष. अच्छा हो तथा धान्यकी प्राप्ति बहुत हो । ६१ ॥ यदि वहां से ऐसा उत्तर: मिले कि इस समय नहीं है तो अगला वर्ष में दुर्भिक्ष जानना | विलक ( देर ) से दान दे तो वर्षा भी विलंब से बरसे ॥६२॥ यदि वहां क्लेश होता देखे तो राजा में विग्रह हो । पात्र का भंग हो तो छत्रभंग जानना ॥६३॥ यदि अंगहीन या रूदन करती हुई दान दे तो रोग आदि उपद्रव हों यह गौतमीय ज्ञान: जहाँ तहाँ उच्चारा न करें ॥ ६४ ॥ अथवा उस दिन लोग जो वचन बोले उसके अनुसार शुभाशुभ फल वर्ष बीच में विचारः करें ६५ ॥
इसी प्रकार शकुनों का बुद्धि से विचार कर के वार्षिक फल कहना.
"Aho Shrutgyanam"
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