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________________ सर्वतोभद्रम् वेध्यं पूर्णदृशा पश्यमेतत्पादुफलं ग्रहः । विदधात्यन्यथा ज्ञेयं फलं दृष्टचनुमानतः ॥ ७६ ॥ वर्णाद्युपरि दृष्टिज्ञानम् -- वर्णादिस्वरराशीनां मेषाचें राशिमण्डले । ग्रहदृष्टिवशाद दृष्टिषेधे बदयो मताः ॥८०॥ स्वरवर्णान् स्वचोक्तान् तिथिविद्धानि पीडयेत् । तिथिवर्णेषु यो राशिस्तद्दृष्टौ स्यान्निरीक्षणम् ॥८॥ अशुभो वा शुभो वात्र शुक्ले विध्यन् तिथिग्रहःसर्व निजफलं दत्ते कृष्णपक्षे तदर्धताः ॥८२॥ खेटस्य स्वांशके ज्ञेया पूर्णदृष्टिः सदा बुधैः । दृष्टिहीने पुनर्वेधे न स्यात् किश्चिच्छुभाशुभम् ॥८३॥ : (४-३) कर्त्ता हो तो पूर्ण फल, वेध कर्ता मित्रग्रह हो तो तीन पाद, समान ग्रह हो तो दो पाद और शत्रुग्रह हो तो एक पाद फल करता है ७८ ॥ कर्ता ग्रह यदि पूर्ण दृष्टिसे देखे तो उपरोक्त पाद क्रम से जितना वेध फल कहा है उतना पूर्ण देता है, और पूर्ण दृष्टिसे न देखे तो दृष्टि के अनुसार फल देता है ॥७६॥ "Aho Shrutgyanam" मेषादि द्वादश राशिचक्र में वेधकर्ताको दृष्टि जिस वर्ण स्वर आदिकी राशि पर हो तो वह दृष्टि उसके वर्ण स्वर आदिके पर भी मानी है ॥ ८० ॥ सर्वतोभद्रचक्र में स्वर और वर्णकी तिथिको वेध होनेसे वे स्थर और वर्ण भी वेधे जाते है, और उन तिथि वर्णों की राशि पर वेध हो तो उनं तिथि स्वर और वर्णके पर भी दृष्टि होती है ॥१॥ वेवकर्ता ग्रह चाहे अशुभ हो या शुभ हो परंतु तिथिको शुक्लपक्षमें वेधे तो पूर्वोक्त वेधफल जितना हो उतना पूर्ण फल देता है, और कृष्णपक्ष में वेधे तो आधा फल देता ॥८२॥ अपने अशोंमें ग्रहकी पूर्ण दृष्टि विद्वानों को जानना चाहिये | वेधकर्ता ग्रह की दृष्टि न हो और केवल वेध ही हो तो कुछ भी शुभाशुभ
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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