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मेघमहोदये कर्पासनाशः प्रमलं सुभिक्षं, - मृगे कुजे भूजलपूरितैव । वृष्टिने रौद्रेऽदितिजे तिलानां, - नाशो विनाशो महिषीकुलस्य ॥१२॥ पुष्ये कुजे चौरभयं विरोधाच्छुभं न किञ्चिन्नुपनिर्यलत्वम् । सार्थेऽल्पवृष्टिबहुधान्यनाशादु, दुर्भिक्षमेवोरगदंशभीतिः॥ पैत्र्ये न वृष्टिस्तिलमाषमुग-विनाशनं दुर्लभताऽन्यधान्ये । स्याद्योनिदेवे क्षितिजेऽल्पवृष्टिःप्रजासु पीडागुडतैलमूल्यम्।। तथोत्तरायां जलवृष्टिरोधाचतुष्पदे पीडनमश्वमूल्यम् । हस्ते कुजेऽल्पाम्बु च तुच्छधान्यं, .
घृतं गुडो वा लवणं महर्घम् ।।१२६॥ चित्राकुजे तीव्ररुजोऽतिपीडा,
शालीष्टगोधूममहतापि । कपास, वस्त्र, सूत ये विशेष करके महँगे हो ॥१२२॥ मृगशिर में मंगल हो तो कपास का विनाश तथा बहुत मुभिक्ष हो और पृथ्वी जलसे पूर्ण हो । आद्रा में मंगल हो तो वर्षा न हो । पुनर्वसु में मंगल हो तो तिल.
और भैसकुलका विनाश हो ॥१२३॥ पुण्यमें मंगल हो तो चोरों का भय हो, विरोध हो जाने से कुछ भी शुभ न हो और राजा निर्बल हो। आश्लेषा में मंगल हो तो वर्षा थोड़ी, बहुत धान्यका विनाश होनेसे दुर्भिक्ष और सर्पका भय हो ॥ १२४ । मघामें मंगल हो तो वर्षा न हो, तिल उड़द और मूंगका विनाश, तथा धान्य दुर्लभ हो । पुर्वाफाल्गुनीमें मंगल हो तो वर्षा थोडी, प्रजा में पीडा, गुड और तेल तेज हो ॥ १२५ ॥ उत्तराफाल्गुनीमें मंगल हो तो जलवर्षा का रुकाव होनेसे पशुओं में पीडा तथा घोड़ों का मूल्य अधिक हो । हस्त में मंगल हो तो जंल थोडा, तुच्छ धान्य, घी गुड और लूण (नमक) ये महंगे हों ॥१२६॥ चित्रामें मंगल
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