SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 455
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रचारफलम् प्राथमध्यान्तभागेन जघन्याप्रसाधनम् ॥११२॥ लध्यक्षस्थाधभागश्चेचन्द्रतिथ्योरथादिमः ।। स्याजघन्योत्तमा?ऽपि लघ्वक्षमध्यमो यदि ॥११३॥ चन्द्रतिथ्योश्च मध्योऽस्ति सदा जघन्यमध्यमः । लध्यक्षस्थान्त्यभागश्चेचन्द्रतिथ्योस्तथान्त्यगः ॥११४॥ तदा दुर्भिक्षमादेश्यं नक्षत्रदुष्टभावतः । विकल्पैः सकलैरेवं सुभिक्षं पृच्छतां वदेत् ॥११॥ शुक्रः कुजो वुधः शौरिगुरुधिष्ण्येऽस्ति राशिगः। तदा जने समर्घ स्यान्मध्यं मध्येऽधमेऽधमम् ॥११६॥ इति धनुःसंक्रमे चन्द्रतिथिनक्षत्रविभागैर्वार्षिकमर्घज्ञानं तदनुसारेण सर्वसंक्रान्तिदिनापेक्षया मासिकमज्ञानं चं बोध्यम् । रामविनोदग्रन्थकर्ता तु वर्षराजापेक्षया तत्तद्राशिधन्मनुष्याणामायव्ययवद्धान्येऽपि विशेषार्थज्ञानाय यंत्रकं प्राह--- हो ॥१११॥ इसी तरह पंद्रह मुहूर्त वाला जघन्य नक्षत्र चंद्रमा और तिथि इनका मादि मध्य और अंत्य ऐसे तीन २ भाग जघन्य अर्घ साधन के लिये कल्पना करें ॥११२॥ लघुनक्षत्र का प्राद्य भाग और चंद्रमा तथा तिथि का भी आदि भाग हो तो जघन्य उत्तमार्य प्राप्ति । लघुनक्षत्रका मध्य भाग और चंद्रमा तथा तिथिका भी मध्यभाग हो तो जघन्य मध्यम । लघुनक्षत्र का अंत्यभाग और चंद्रता तथा तिथिका भी अन्त्यभाग हो तो नक्षत्र का दुष्टभाव से दुर्भिक्ष कहना । इसी तरह समस्त विकल्पों का विचार कर पूछनेवालेको सुंभिक्ष प्रादि कहें ॥११३ से ११५॥ शुक्र, मंगल, बुध और शनि ये बृहदनक्षत्र पर हो तो लोक में धान्यादि सस्ते, मध्यनक्षत्र पर हो तो मध्यम और अधमनक्षत्र पर हो तो अधम कहना ॥११६॥ यह धनुसंक्रांति में चंद्रमा तिथि और नक्षत्र के विभाग द्वारा वार्षिक अर्घज्ञान कहाँ । इसी तरह सब संक्रांतिके दिनकी अपेक्षासे मासिक अर्घज्ञान जानना चाहिये। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy