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________________ चन्द्रचारफलम् (४२७) एयाणं पि य मज्झे अमियाइ तिए जलासयो अहिओ। तुरियाए वायमिस्सो सेसासु समीरणो अहिओ ॥१३॥ जइ सव्वाणवि जोगो गहाण अमियाइ तिगे अनाधुट्टी। अट्ठार १८बार १२छर्दहिण सेसासु फलं जहापत्तं ॥४॥ विजला वि वाउनाडी देइ जलं सोमखहरयाजोगा । जलनाडी तुच्छजलं पावाहियजोगओ देह ॥६५॥ जइ वाउनाडीपत्ता सणिभोमा किमवि नहु जलं दिति। मोमजुना तेउ जलं अइसयजोएण वरिसंति ॥६॥ + विसमयरकुंभमीणा सीहो काकडयविच्छियतुलाओ। सजलाओ रासीओ सेसा सुका वियाणाहि ॥७॥ रविसणिभोमनुक्का चंदविढप्पो य बुहगुरू सुक्को । एए सजला णिचं णायव्वा आणुपुन्बीए ॥६॥" . इति भद्रबाहुसंहितायाम् । तीन नाडी अधिक जलदायक होती हैं, चौथी नाडी वायु मिश्र जलदायक है और बाकी की नाडी अधिक वायुकारक हैं ।। ६३॥ यदि समस्त ग्रहों का योग अमृतादि तीन नाडी पर हों तो क्रमसे अठारह बारह और छ दिन अनावृष्टि रहे और बाकी के नाडी का फल यथायोग्य जानना ॥६४॥ यदि शुभग्रहों का अधिक योग हो तो निर्जला-वायुनाडी भी जलदायक हो जाती है और पापग्रहों का अधिक योग हो तो जलनाडी भी तुच्छ जल देती है ॥६५॥ यदि शनि तथा मंगल वायुनाडी में हो तो कुछ भी जल नहीं देती किंतु शुभग्रहों के साथ अतिशय जोग हो तो जल बरसते हैं ॥६६॥ वृष मकर कुंभ मीन सिंह कर्कट वृश्चिक और तुला ये राशि जलदायक हैं और बाकी की शुष्क (निर्जल ) हैं ॥ ६७ ॥ रवि शनि मंगल ये शुष्क (निर्जल) +टी- कुभमीनमृगकर्कटवृषवृश्चिकतौलसंशकाः। सप्ताः स्युर्जलराशय एते शेषा जलवर्जिताः पञ्च ॥९॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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