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चन्द्रचारफलम्
"याञ्चन्द्रनाथ्यो मनुसंयुनास्ता, गुण्या नगैः पावकभागमत्ताः एकाक्शेषे कथितं सुभिक्षं, शून्येन शून्यं द्वितयेऽघहानिः ।। केवलकोतिराहःज्येष्ठोत्तारे समावस्यां भानोरस्तं विलोकयेत् । तथा चन्द्रमसश्चापि द्वितीयायां महोदयम् ॥३६॥ यद्युत्तरां शशी याति मध्यं या दक्षिणां रवेः । उत्तमो मध्यमो नीचकालः सम्पद्यते तदा ॥४०॥ रुद्रदेवस्तु-ज्येष्ठस्यान्ते प्रतिपदि सूर्यस्यास्तं विलोकयेत् । द्वितीयायां वीक्ष्यतेऽजं गतमुत्तरदक्षिणम् ॥४१॥ सुभिक्षमुत्तरदिशि विपरीतं तु दक्षिणे । तत्माम्ये मध्यम वर्ष ज्येष्ठान्ते तबदेवहि ॥४२॥ अथ सप्तनाडीचऋविमर्श:--- सप्तनाडीमये चक्रे शनिसूर्यारसूरयः । शुक्रज्ञचन्द्रा नाथाः स्युरष्टाविंशतिर्भानि च ॥४३॥
चंद्रनाकी घड़ी में चौदह जोड़कर सातसं गुणा करें पीछे इसमें तीन का भाग दें, एक शेष बचे तो मुभिक्ष, शून्य बचे तो शून्यता और दो बचे तो भर्धका विनाश हो ॥ ३८ ॥ ____ ज्येष्ठ अमावसके दिन सूस्त के समय देखे, वैसे द्वितीया के दिन चंद्रमाका उदयको देखे ॥३६॥ यदि सूर्यसे चंद्रमा उत्तर मध्य या दक्षिण तरफ उदय हो तो क्रमसे उत्तर मध्यम और नीच काल होता है ॥४०॥ ज्येष्ठ मास के अंत में प्रतिपदा को सुस्त समय या द्वितिण को उत्तर या दक्षिण तरफ चंद्राको दे वा चाहिये ॥४१॥ यदि उत्तर दिशामें उदय हो तो मुभिक्ष, दक्षिणमें उदय हो तो दुकाल और मध्यमें उदय हो तो मध्यम वर्ष हो । ४२॥
संतनाडीचक्रमें शनि सूर्य मंगल बृहस्पति शुक्र बुध और चंद्रमा के
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