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मेवमहोदय
जन्मवेधादयं नेष्टः श्रेष्ठः स्वसुहृदो गृहे ॥६॥ यस्मिन् वारेऽस्ति संक्रान्तिस्तत्रैवामावसी तिथिः । लोके स्वर्परयोगोऽयं जीवाद्धान्याद्विनाशकः ॥२॥ शनिः स्यादाद्यसंक्रान्तौ द्वितीयायां प्रभाकरः। तृतीयायां कुजे योगः खप्पराख्योऽतिकष्टकृत् ॥६॥ स्यात् कार्तिके वृश्चिकसंक्रमाहे,
सूर्ये महर्घ भुवि शुक्लवस्तु । म्लेच्छेषु रोगान् मरणाय मन्दः,
कुजः परं धान्यरसग्रहाय ॥६४॥ लाभस्तु तस्य त्रिगुणस्त्रिमास्यां,
बुधे च पूगादिफलं महर्षम् । गुरौ च शुक्रे तिलतैलसूत्रकर्पामरूतादिमहर्घता स्यात् ॥६५॥
जिस दिन सूर्यसंक्रांति हो उस दिन उसी राशि पर चंद्रमा हो याने कोई भी संकांतिके दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि पर हो तो जन्म. वेध होता है वह अनिष्ट है और मित्रगृहमें हो तो श्रेष्ठ होता है ॥ ६१ ॥ जिस धार की संक्रांति हो उसी वार की अमावस भी हो तो लोक में खर्पर योग होता है यह प्राणी और धान्य आदिका नाश करता है॥६२॥ यदि प्रथम संक्रांति को शनिवार , दूसरी को रविवार और तीसरी को मंगलवार हो तो खर्पर योग होता है यह बहुत कष्टदायक होता है ॥६३॥ यदि कार्तिक मासमें वृश्चिकसंक्रांति रविवार की हो तो श्वेत वस्तु महँगी हो, शनिवार की हो तो म्लेच्छोंमें रोगसे मरण हो, मंगलवार की हो तो धान्य और रसका ग्रहण करना ॥६४। इसले तीन महीने त्रिगुना लाभ हो। बुधवार की हो तो पूगीफल ( सोपारी ) आदि महँगे हों। गुरुवार और शुक्रवार की हो तो तिल तेल सूत कपास रूई .आदि महंगे,
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