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सूर्यचारकथनम्
(३९.१)
अोदनपायसभैक्षक-पक्कानं दुग्धधिविचित्रानम् । गुडमधुरसखण्डानां भक्ष्याणि रवेधादौ स्युः ॥२२॥ कस्तुरीकाश्मीरजचन्दनमृद्रोचनाख्यालक्तरसः । जवादि (रस) निशाकजलकृष्णागुरुचन्द्रलेपोऽर्के ॥२३॥ भृकुण्डीगदाखड्गदण्डं धनुश्च, रवेस्तोमरः कुन्तपाशांकुशास्त्रम्। असिर्वाण एवं बवायायुधानि, क्रमात्मक्रमस्याहि बोध्यानि धीरैः देवनागभूतपक्षिपशवो मृगसूकराः (भूसुराः)। राजन्यवैश्यशुद्राख्या जातयो वर्णसङ्करः ॥२५।। पुन्नागजातीफलकेसराख्या,
श्रीकेतकं दौर्विकमर्कबिल्वे । स्यान्मालतीपाटलिका जपा च,
जातिः क्रमात् संक्रमणेऽर्कः पुष्पम् ॥२६॥ ग्रन्थान्तरे तु-विष्टयां चतुष्पदे व्याघ्र महिषे नागतैतिले ।
संक्रांति भाजन- भात, पायस (दूब की मीठाई), भिक्षा (घर २ भिक्षा मांगना), पकांन्न (मालपूआ आदि), दूध, दही, विचित्र अन्न, गुड, मध, घी और सक्कर ये ग्यारह भोजन हैं ॥२२॥ ____ संक्रांति विलेपन- कस्तूरी, कुंकुम, चंदन, मट्टी, गोरोचन, अलक्त रस, मार्जारमद, हलदर, कजल, कालागुरु और कर्पूर ये ग्या ह विलेपन
संक्रांतिके आयुध-- भूशुंडी, गदा, खड्ग, दंड, धनुष, तोमर, कुंस, पाश, अंकुश, तलवार, और बाण ये ग्यारह शस्त्र है ॥२४॥
संक्रांति जाति- देव, नाग, भूत, पक्षी, मृग, शूकर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, और वर्णसंकर ये ग्यारह जाति हैं ॥२५॥
संक्रांति पुष्य- नागकेसर, जायफल, केसर, कमल, केतकी, दूर्वा, अर्क, बिला, मालती पाडलि, और जपा ये ग्यारह पुष्प हैं ॥ २६ ॥
"Aho Shrutgyanam"