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________________ मेघमये (३७८) वारा: शनिकुजादिस्या भाविवर्षविनाशकाः ॥२३१॥ पौषे मूलममावस्यां वृष्टये लोकतुये । शन्यादित्यकुजास्तस्यां बहुलाभाय धान्यतः ॥ २१२|| पौषकृष्णदशम्यां स्वाद् विशाखा निशि वा दिवा । भावि वर्षेऽम्बुदः प्रौढ्योऽपरं पार्श्वजिनेश्वरः || २३३|| कुलके-पोसस्स पुन्निमाए णक्खत्त पूसयं सथल दिवसे । तो रस अन्न समग्धं होइ संवच्छरं जाब ॥२३४॥ पौषकृष्णप्रतिपदि रोहिण्या भोगसम्भवे । सप्तमासाद् धान्यलाभ छत्र मंगोऽथवाम्बुदः ॥ २३५॥ अथ माघमासः - माघायदिवसे वारो बुधो भवति चेत्तदा । मासत्रयं महर्ष स्याद्भावि वर्ष विनश्यति ॥ २३६ ॥ माघाऽसितस्य प्रनिए- द्वितीया वा तृतीयका । त्रुटिता धान्यसङ्ग्रहे लाभाय वणिजां मता ॥ २३७॥ पूर्वाषाढा तथा ज्येष्ठा नक्षत्र हो और शनि रवि या मंगलवार हो तो अगले वर्षका विनाश हो ॥२३१॥ पौष अमावस को मूल नक्षत्र हो और शनि वि. या मंगलवार हो तो वर्षा हो, लोक संतुष्ट हों और धान्य से बहुत लाभ हो ॥२३२॥ पौष कृष्ण दशमीको विशाखा नक्षत्र रात दिन हो सोह अगला वर्षका मेघ पुष्ट होता है, जैसे दूसरा श्री पार्श्वजिनेश्वर हो ॥ २३३ ॥ कुलक में कहा है कि- पौष पूर्णिमा को पुष्य नक्षत्र समस्त दिन हो तो वर्षभर रस और धान्य सस्ते हों ॥ २३४ ॥ पौष कृष्ण प्रतिपदा को रोहिणी नक्षत्र हो तो सात महीने धान्य से लाभ हो या छत्रभंग हो ॥ २३५॥ इति पौषमास ॥ यदि माघ मास की प्रतिपदा को बुधवार हो तो तीन महीने तेजी रहे और अगला वर्ष विनाश हो ॥ २३६ ॥ माघ कृष्ण प्रतिपद द्वितीया या "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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