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________________ (३७४) मेघमहोदये भौमे भूम्यां महावही रवियुद्धाय भूभुजाम् ॥२०७॥ *यत: होली पोली दीवालीइ, रवि शनि मंगल होय । खप्पर लीधे जग भमे, जीवे विरलो कोय ॥२०८।। चतुर्मासकुलकेनमिऊण तिलोयरविं जगवल्लह जलहरं महावीरं । चुच्छामि अग्घकण्डं जं कहियं जिणवरिंदेण ॥२०९॥ कत्तियपूनमदिवसे कत्तियरिक्खं च होइ संपुन्नं । ता चत्तारि वि मासा होइ सुभिक्खं सुहं लोए ॥२१॥ अह भरणी तहिवसे चत्तारि वि पुहर होइ संपुण्णा। ता जाणह दुन्भिक्खं मासा चउरो वि सस्साणं ॥२१॥ अह रोहिणी तदिवसे हविज्ज चत्तारि पहरसंपुरणं। ता जाणह अग्घहाणी मूलरसाणं च दवागां ॥२१२।। की अमावसको यदि शानवार हो ता धान्यका विनाश हो, मंगलवार हो तो पृथ्वी पर अग्नि का उपद्रव हो और रविवार हो तो राजाओं का युद्ध हो ॥ २०७ ॥ होली पोली (विजया दशमी) और दीवालीको रवि शनि या मंगल हो तो लोक खप्पर लेकर जगत् में घूमें याने बड़ा दुष्काल हो कोई विरला बचें ॥२०८॥ चतुर्मास कुलकमें कहा है कि- त्रिलोक के रवि, जगवल्लभ जलधर श्री महावीर जिनको नमस्कार करके जिनेंद्र भगवान ने कहा हुआ अर्द्धकाण्ड को कहता हूँ ॥२०॥ कार्तिक पूनमको कृतिका नक्षत्र पूर्णतया हो तो चारों ही महीने सुभिक्ष रहें और लोक सुखी हो ॥२१०॥ यदि उस दिन भरणी नक्षत्र चार प्रहर पूर्ण हो तो चार महीने धान्य महँगे (दुर्भिक्ष) हो ॥ २११॥ यदि उस दिन रोहिणी नक्षत्र चार प्रहर पूर्ण हो तो मूल रस और द्रव्यके अर्धकी हानि हो ॥२१२॥ पूर्णिमा *टी-स्वाति दीवा नव बले, विशाखा न खेले गाय । कै लाख गयंदा रण पडे, कै निष्फल शाखा जाय ॥१॥ दीपोत्सवादिने वारो भौमो वह्निभयावहः। संक्रांतीनां च नैकध्यं शुभ मर्यादिके नहि ॥२॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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