SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिथिफलकथनम् प्रमावस्याधिके ऋक्षे यदा चरति चन्द्रमा । अर्थे चा धिको ज्ञेया हीने हीनत्वमाभुयात् ॥१७८॥ प्रकृतम्-भाद्रपदे शुक्लषष्ठया-मनुराधा * यदा भवेत्। नक्षत्रान्तरदोषेऽपि सुभिक्षं निर्णयाद् वदेत् ।।१७।। अथाश्विनमास:------ आश्विने प्रथमायां चे-च्छुक्लायां शनिरागते । तदा धान्यं न विक्रय पुरस्तस्य महर्घता ।।१८०॥ + शुक्लायां च द्वितीयाया-माश्विने चन्द्रवारतः । मूलस्पर्श पुनो मूनात् तदा धान्यस्य संग्रहः ॥१८१॥ आश्विने हि तृतीयायां यदि भौमः शनैश्चरः। तदाग्निः प्रबलो भूम्या-मन्यवारे समता ॥१८२॥ चतुर्थ्यामाश्विने सूर्ये विक्रेतव्यं घृतं जनैः। का अधिक नक्षत्र पर चन्द्रमा गमन करे तो धानका भाव सम्ता हो और हीन नक्षत्र पर गमन करे तो धानका भाव तेज हो ॥१७८॥ भाद्रशुक्ल षष्ठी को यदि अनुराधानक्षत्र हो तो दूसरे नक्षत्रोंका दोष रहने पर भी निश्च से सुभिक्ष कहना ॥ ११६ ॥ इति भाद्रपदनास ॥ आश्विन शुक्लप्रतिपदाको शनिवार हो तो धान्यका संरह करना चाहिये, मागे वह महंगे भाव होंगे ॥१८०॥ आश्विन शुक्ल में धनुगशिका चंद्रमा के समय द्वितीया, और मूल नक्षत्र में सोमवार को धान्य का संग्रह करना चाहिये ॥ १८१॥ यदि तृतीयाके दिन मंगल या शनिवार हो तो पृथ्वी पर गरमी प्रचल हो और दूसरे वार हो तो सस्ते हो।। १८२ ॥ शुक्ल अटी-पारखडा सब बोलीया काई सचितो नाह भाबडो जग रेलसी, जो छठे अनुराह ।। इति लोक भाषायां ॥ +टी-इदमपिन संभवति-आश्विने शुषलद्वितीयायधनुशिचन्द्रमा प्राप्ते तेन द्वितीयादिने मूलदिने च चन्द्रवारे धान्यसंग्रहः । ४७ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy