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________________ तिथिफलकथनम् भाद्रमासे. ह्यमावस्यां रचौ घृतमहर्घता । धान्यं महर्घ भोमे ज्ञे शनौ तैलं विनिर्दिशेत् ॥१६॥ यतः-मुद्र जोग ए भादवे, अमावसि रविवार । उजेणी हुंती पश्चिमे होसी हाहाकार ।।१६६।। अन्यस्मिन्नपि मासे चे-देकैवामावसी रवौ । तदा वर्षस्य विश्वांशा मानं पश्चदश स्मृताः॥१६७॥ अमावसीयं सूर्य-वारे टिप्एनके यदा । दश विंशोपका वर्षे खण्डवृष्टयादिनोदिताः ॥१६८॥ रविवारादमावस्या प्रये पञ्च विंशोपकाः। छत्रभङ्गोऽथ दुष्कालो रवौ दर्शचतुष्टये ॥१६९॥ इत्यमावास्यारविवारफलम् । रुद्रदेवः सप्तवारफलान्याह:..."अमावास्याः फलं वक्ष्ये वार भुत्तया शृणु प्रिये। येन विज्ञायते कालो वत्सरे मासनिर्णयः ॥१७०॥ भाद्रपदकी अमावसको रविवार हो तो घी महँगे हों, मंगल या बुधवार हो तो धान्य महँगे हो और शनिवार हों तो तेल महँगे हों ॥१६॥ अमावसको रविवार हो तथा मुद्गरयोग भी हो तो उजयणी से पश्चिमदिशा में हाहाकार. अनिष्ठ हो ॥ १६६ ॥ इससे दूसर कोई मासकी अमावस को रविवार हो तो वर्षके विश्वा पंद्रह माना गया है ॥१६७॥ पंचांगमें यदि दो अमावस रविवार को हो तो वर्षके दश विश्वा माने हैं और खण्डवृष्टि होती है ॥१६८। तीन अमावस रविवार को हो तो पांच विश्वा माने है। यदि चार अमावस रविवार को हो तो छत्रभंग तथा दुष्काल हो ॥१६६॥ रुद्रदेवके मतसे हे प्रिये ! वारानु क्रमसे अमावसका फल कहता हूँ, जिससे * टी-मंगल करे पलेवडु, बाला बुधेमरंति। रविशनिहोय अमावसे, अन्न रस मुहका हुंति ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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