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कर्पूरचक्रम्
(१७) सुक्को रायपयाणं वुढिकरो जणियजगामाणंदो। मंदो नरवइकडं दुन्भिक्खभयंकरो घोरो ॥ ८०॥ राहू खप्पर रज्ज धूव विणासेइ उत्तमवहूणं । दुप्पयपसुसंहारो अइअरित्तनासकरो केऊ ॥ ८१॥ अक्कजराह मिलिया कत्तरिजोगेण एगए ससिट्टिया। जं जं नक्खत्तं वेधइ तत्थेव करोय (करेइ) महारं ॥ ८२॥ अंगारो अग्गिकर अन्नविसलाखे जंतुपिट्टिचरो। तत्थ विदिसाविभागो दुक्खं वणियाणं निवमरणं ॥८३॥ तिहिाविमी सियपक्खे भहवयपासमाहमासाणं । निवमरणं दुन्भिक्खं विहिकुलहाणं च मासेसु ॥ ८४ ॥ मासक्खओ पुन्निमहीणा तुल्लिा अहिया अहियत्तरी । दुभिक्खं होइ महग्धं समग्धं होइ सुभिक्खं ॥ ८५ ।। मनुष्यों को प्रानंददायक है। शनि-गजा को कष्ट और भयंकर दुर्भिक्षकारक है ॥ ८० ॥ गहु- खर्पर राज्य का और उत्तम बधूओं का विनाशकारक है । केतु-मनुष्य और पशुओं का विनाशकारक है ॥ ८१ ॥ कर्तरीयोगसे शनि गहु मिल जाय और साथ चंद्रमा होकर जो जो नक्षत्र को वेधे उनका नाश करें ॥८२ ।। मंगल अग्निकारक है, रवि अन्ननाशक है, इसी तरह विदिशा विभाग में व्यापारी को दुःख और राजा का मरण हो ॥ ८३ ॥ भाद्रपद पौष और माघ महीने के शुक्लपक्ष की तिथि का क्षय हो तो गजा का मगण, दुर्भिक्ष, विधिकुल (ब्रह्मकुल) की हानी हो ॥८४ ॥ क्षयमास हो या पूर्णिमा का क्षय हो तो दुर्भिक्ष हो, पूर्णिमा समान हो तो समान भाव और अधिक या विशेष अधिक हो तो सुभिक्ष होता है । ८५ ॥
"Aho Shrutgyanam"