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________________ मेघमहोदये ततस्तु रसनिष्पत्तिः फलनिष्पत्तिरेव च । उत्साहः सर्वलोकाना-मेवं भावास्त्रयोदशः ॥३७॥ अन्यदपि प्रासंगिकं यथा-- शाकाब्दं वसुभिर्निनं नवभिर्भागमाहरेत् । शेषं तु द्विगुणीकृत्य रूपमत्राभियोजयेत् ॥३८॥ उग्रता पापपुण्ये चं व्याधिश्च व्याधिनाशनम् । आचारश्चाप्यनाचारो मरणं जन्मदेहिनाम् ॥३९॥ देशोपद्रवसुस्थत्वे चौराकुलभयं तथा । चौरोपशमनं चाग्नि-भयं चाग्निशमः पुनः॥४०॥ शकः पञ्चभिः सप्तभिगोभिरीश श्चतुहितः सप्तभक्तावशिष्टम् । विनिघ्नं त्रिभियुक्तमुद्भिज्जरायब ण्डजस्वेदजानां भवेयुर्विशोपाः ॥४।। शाकोऽङ्गटनोहच्छेषं द्विघ्नं व्याढयमवाप्सतः। के तेरह भाव हैं ॥३७॥ शक संवत्सर को आठ गुना कर नव से भाग देना, जो शेष बचे उसको दोसे गुणाकर इसमें एक मिला देना तो ॥ ३८ ॥ उग्रता, पुण्य, पाप, व्याधि, व्याधिनाशक, आचार, अनाचार, प्राणियोंका मरण ॥३६॥ तथा जन्म, देश में उपद्रव तथा शान्ति, चोरभय, चोरोंकी शान्ति, अग्निभय और अग्नि की शान्ति, इनके विंशोपका हो जाते हैं ।। ४० ॥ शक संवत्सरको पांच, सात, नव और ग्यारह इनसे गुणाकर सातसे भाग देना, जो शेष बचे उस को दोसे गुणाकर इस में तीन जोड़ देना तो उद्भिज, जरायु, अंडज और स्वेदज इनके विंशोपका हो जाते हैं ॥ ११ ॥ शकसंवत्सरको छसे गुणाकर नवसे भाग देना, जो शेष बचे उसको दोसे गुणाकर इसमें तीन जोड़ देना. इस अंकको सात जगह रखना तो शलभा, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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