________________
वर्षराजादिकफलम्
(२८७) उदीच्याम निष्पत्तिः समर्षा धातवस्तदा ॥१५७॥ पूर्वस्यां विग्रहो राज्ञां दुःखं मासत्रयं जने । पश्चात् सुखं धान्यनाशो मध्यदेशे प्रजायते ॥१५८॥ दक्षिणस्थां देशभङ्गो भाविवर्षे प्रजायते। धातूनां विक्रयः कार्यः परतो मासपश्चकात् ॥१५॥ धनुर्लग्ने तूत्तरस्यां पूर्वस्यां च सुखं नृणाम् । सुभिक्षं प्रथला वृष्टि-मध्यदेशे सरोगता ॥१६॥ पश्चियायां घृतं धान्यं समर्घ मासपञ्चकात् । .. दक्षिणस्यां सुखं लोके किञ्चित्पीडा चतुष्पदे ॥१६॥ मकरे च महोत्पात उत्तरस्यां नृपक्षयः। । वर्षमेकं सुनिष्पतिः पश्चिमायां महासुखम् ॥१६॥ मध्यदेशेऽर्द्धनिष्पत्तिः किश्चिद् धान्यमहता।
अकाले मेघवृष्टिः स्या-ल्लाभो धान्यस्य विक्रयात् !॥१६३॥ में दो महीने कुछ उत्पातका संभव रहें ॥१५६॥ वर्ष प्रवेशमें वृश्चिक लग्न हो तो पधिम देशमें नवमास तक दुर्भिक्ष रहे । उत्तर में अनकी अर्द्धप्राप्ति, भौर धातु सस्ती हो ॥१५७॥ पूर्वदेश के राजाओं में विग्रह, तीन महीने मनुष्योंको दुःख, पीछे मुख और मध्यदेश में धान्य नाश हो ॥१५८॥ दक्षिणमें आगामी वर्षमें देशभंग हो, पांच महीने बाद धातुओं का विक्रय करना ॥१५६॥ धनु लग्नमें वर्ष का प्रवेश हो तो उत्तर और पूर्व देश के मनुष्योंको सुख, सुकाल और प्रबल वर्षा हो । तथा मध्यदेश में रोग हों ॥१६०॥ पश्चिममें पांच महीने बाद घी धान्य सस्ते हों, दक्षीग में लोगों को सुख और पशुओंको कुछ पीडा हो ॥१६१॥ मकर लग्नमें वर्ष प्रवेश हो तो उत्तर में बड़ा उत्पात, नृपक्षय, पश्चिम में एक वर्ष धान्य अच्छे उत्पन्न हो और बड़ा सुख हो ॥१६२॥ मध्यदेश में अर्द्ध प्राप्ति होने से बान्य कुछ महँगे हों, अकालमें मेघ वर्षा हो और धान्यको बेचनेसे लाभ
"Aho Shrutgyanam"