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________________ वर्षराजाविकफलम् काति माहि मूलदिन, कोटवाल जो चार ॥ १८॥ एते वर्षराजादयः पूर्वधान्यनिष्पत्तये । विजयदशम्यां वारो यः स राजाग्रभागपः । मकरार्केऽस्य मन्त्री स चैत्रमासाद्यपो धनी ॥ १६ ॥ तुलार्के दिनवारो यः स हि सर्वरसाधिपः । धनुष्यर्केऽहि वारस्तु स सस्याधिपतिर्मतः ॥२०॥ कार्त्तिके मूलनक्षत्रे वारः स कोट्टपालकः । एते राजादयश्रांण-कालिकं धान्यमादधुः ॥२१॥ अत्रापि मतान्तरे धनमन्त्री कुम्भ सस्यपति, फागुण अंतिवार । निश्चयराजा परखीइ, एहि जोस विचार ||२२|| केबलकीर्त्ति दिगम्बरकृतमेघमालायां पुनरेवआगच्छति यथा भूपे गेहे गेहे महोत्सवः । जो वार हो वह कोटवाल होता है ॥ धान्य निष्पत्तिके लिये पहले कहें ॥ (२६३) १८ ॥ ये सब वर्ष के राजा आदि बिजयदशमी के दिन जो वार हो वह राजा, मकरसं कान्तिके दिन जो वार हो वह मंत्री और चैत्रकी प्रतिपदा के दिन जो वार हो वह धन का अधि पति है ॥ १६ ॥ तुलासंक्रान्तिके दिन जो वार हो वह सब रसका अधिपति और धनुसंक्रान्तिके दिन जो वार हो वह धान्यका अधिपति है ॥ २० ॥ कार्तिक में मूलनक्षत्र के दिन जो वार हो वह कोटवाल है । ये सब राजा मादि धान्य को देनेवाले हैं ॥ २१ ॥ मतान्तर से - धनुसंक्रान्ति के दिन जो वार हो वह मंत्री, कुंभसंक्रान्ति के दिन जो वार हो वह धान्याधिपति और फाल्गुनमास का अंतिम दिन जो वार हो वह निश्चय करके वर्षका राजा है, यही ज्योतिषियों का विचार है ॥ २२ ॥ केवलकीत्ति-दिगंबराचार्यने अपनी मेवमाला में कहा है कि- जैसे नवीन राजा आते है तब घर घरमें बड़ा "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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