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________________ (२२८) मेघमहोदये भरण्यां च किरातेशं कृत्तिकायां कलिङ्गम् ||६५|| रोहिण्यां शूरसेनेशं मृगे चोशीनराधिपम् । आर्द्रायां जालणाधीश- मइमकेशं पुनर्वसौं ॥ ६६ ॥ पुष्ये च मगधाधीशं सार्वे केरलका (काशिका) धिपम् । मघायामङ्गनाथं च पूफायां पाण्ड्यनायकम् ॥६७॥ उज्जयिन्यां नृपं हन्या-दुत्तराफाल्गुनीं गतः । दण्डकाधिपतिं हस्ते चित्रायां कुरूभूपतिम् ॥ ६८ ॥ स्वात्यां काश्मीरकम्बोज - भूपतीनां विनाशकः । इक्ष्वाकुकुर लेशानां विशाखायां च घातकः ॥ ६९ ॥ मैत्रे पौण्डमहीनाथं सार्वभौमं तथैन्द्रभे । अन्धमद्रकनाथं च मूलस्थो हन्ति निश्चितम् ॥ ७० ॥ पूर्वाषाढा काशिराज-मुत्तरा हन्ति कैक्रवम् । > अश्विनी में केतुका उदय हो तो अश्मक देशके राजाको कष्ट हो स्था उसका विनाश हो ) भरणी में किरातदेश के और कृत्तिका में कलिंग देशके राजाको कष्ट हो ॥ ६५ ॥ रोहिणीमें सूरसेन देशके राजाको मृगशिर में उशीनर देशके राजाको, आर्द्रामि जालण देशके राजाको, पुनर्वसु अश्मक देशके राजाको कष्ट हो ॥ ६६ ॥ पुष्यमें भगवदेश के अधिपति को, आक्षेत्रामें केरलयाधिपतिको, मवामं अंगनाथको पूर्वाफाल्गुनी में पाय देश के राजाको कष्ट हो ॥ ६७ ॥ उत्तराफाल्गुनीमें उज्जयिनीके राजाको, हस्त में दण्डक देश के पतिको, चित्रामें कुरुदेशके राजाको कष्ट हो ॥६८॥ स्वातिमें उदय हो तो काश्मीर और काम्बोज देशके राजाओंको, विशाखा में इक्ष्वाकु और कुरलदेशके राजाओं कष्ट हो || ६ ||| अनुराधा पौड्रदेश के राजाको ज्येष्टा में सार्वभौम (चक्रवर्ती) को कष्ट हो मूल में अंध्र तथा भद्रदेशके राजाओंको कष्ट हो ॥ ७० ॥ पूर्वाषाढा काशीदेश के राजाको, उत्तराषाढा में देश राजाको, अभिजित में शिविपवेदीशके राजाको श्रवणामें - ६ " Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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