________________
(१५१)
पञ्चमासान् व्यतिक्रम्य षष्ठे कार्योऽस्य विक्रयः । लाभश्व द्विगुणो ज्ञेयो निश्चितं शास्त्रभाषितम् ॥ १९ ॥ तुलाराशि यदा राहुः संस्थितः संक्रमे रवेः । तदा भवति दुर्भिक्षं पितुः पुत्रस्य विक्रयः ॥ २० ॥ बार्षिकं सन्हं कुर्याद् व्रीहीणां च विशेषतः । नायकानां तथा लोके लाभः कम्बलकांश्यतः ॥ २१॥ कन्यागतो यदा राहुः सम्भवेन्मासपञ्चके । तदा विज्ञाय संग्राह्यं धातकीपिप्पलीद्वयम् ||२२|| मासमेकं च संग्राह्य धातकीपुष्पविक्रयः । मासद्वयान्ते पिपल्या लाभो भवति वाञ्छितः ॥ २३॥ सिंहराशौ क्रमाद् वको यदा राहुः प्रवर्त्तते । अवश्यं सङ्ग्रहः कार्य-स्तदा चोष्येषु वस्तुषु ||२४|| आदौ धान्यकमादाय शुंठीमरिचपिप्पली ।
साथ हों तो कपड़े का और घी का संग्रह करना चाहिये ॥ १८८ ॥ पांच मास के बाद छठे मास में बेचनेसे दूना लाभ निश्चयसे हो ऐसा शास्त्र में कहा है ॥ १६ ॥ जत्र तुलाराशि का राहु सूर्य की संक्रान्ति के दिन हो तो महा दुष्काल पड़े, यहां तक कि पिता पुत्र को और पुत्र पिता को भी बेच डाले ॥ २० ॥ ऐसे समय में विशेष कर चावलों का संग्रह करना उचित है, उससे तथा कंचल ( ऊनी वस्त्र ) और कांसे से लोक में द्रव्यका लाभ हो ॥ २१ ॥ यदि कन्याराशि का राहु हो तो धातकी तथा पीपल ये दोनों पांच महीने तक संग्रह करना उचित है || २२ || धातकी पुष्प को एक मास संग्रह कर पीछे बेचे और पीपल को दो मास पीछे बेचे तो इच्छित ( मन चाहा ) -लाभ होता है | २३ || यदि सिंहराशि में राहु वक्री हो तो चोग्य वस्तु ( चूसने योग वस्तु) का संग्रह करना उचित है ॥ २४ ॥ प्रथम धनिया -सौठ मिच पीपल जीरा लवण, कोलानोन, सेंधानमक और खैर इनका इस
"Aho Shrutgyanam"