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शनैश्चरचारफलम्
समता लविंगकेसर एलापार दहिंगुपानडी रेशमकधीरशुंठि एतानि महार्घाण, क्षत्रियाणां मालवदेशे खण्डे जयः, दुर्गरोधः, उच्चवस्तुविक्रयः । ' इत्येतद् गोतमस्वामि ' इत्यादिपूर्ववत् ॥ ३॥ कर्क राशौ शनिस्तदा मेदपाटदेशे मालवसीमान्तं उद्ध्वंसता, छत्रभंगो महीपतेः, राजयुद्धं सघल, मालपदे मुगलकटकं, तापीनदीतीरं यावद् विग्रहः परं कुशलं, दक्षिणदिशि लोकनाशः, ग्रामभंगः, श्रावणे धान्यं महर्चे, भाद्रपदे जलोपद्रवः, मेघा बहवः, आश्विने वर्षा, अहिफेन महर्चता , मासइये पुनः समर्धता, वस्तु महङ्घे घोटकमहिषमहघेता व्यापारे लाभः । ' इत्येद् गौतमस्वामि ' इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४ ॥
सिंहराशौ शनिस्तदाऽन्नं सर्वत्र निष्पद्यते, जलवृष्टि बहुलता, मालबदेशे व्यापारे लाभः, राशिभोगानन्तरं मासदेशगमनं पातिसाहि चलाचलत्वं परमन्नं समये शाकबन्धतुल्याः
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दुर्गभंग, दो मासके पीछे एक मास तक दुर्भिक्ष, एक वर्षके पीछे धान्य प्राप्ति अच्छी हो, पूर्वदेशमें उत्पात, गुडभाव सम, लौंग केसर ईलाईची पारा हिंगलु पानडी रेशम कधीर और सोंठ ये सब तेज, क्षत्रियोंका मालवा देश में जय, दुर्गरोध, उच्च वस्तुका व्यापार ॥ ३ ॥
जब कर्कराशिका शनि हो तब मेदपाटदेश में मालवा के सीमा तक देश . का विनाश, राजका छत्रभंग, वोर राजयुद्ध, मालपददेशमें मोगलोंके सेनाका उपद्रव, तापीनदीके तट तक विग्रह और आगे कुशल हो, दक्षिण दिशा में लोकका नाश, गाँवका भंग, श्रावण में धान्यभाव तेज, भादोंमें जलका उपद्र, वर्षा अधिक, आसोजमें वर्षा, अफीम तेज, दो मास पीछे सस्ता, घोडा भैंस महँगे, व्यापार में लाभ हो ॥ ४ ॥
जब सिंहराशि का शनि हो तब सब जगह अन्न पैदा हो, जलवर्षा विशेष, मालवादेश में व्यापार में लाभ, राशिभोगका एक मास के पीछे देशमें २६
"Aho Shrutgyanam"