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पाली (मारवाड) निवासी श्रीमान् ज्योतिषरत्न पं-मीठालालजी व्यास ने नीचे लिखे हुए श्लोकों का अर्थ सूधार कर भेजा है
पृष्ठ- १३ श्लोक ४६- ४७- ४८ -- ज्येष्टशुक्ल अष्टमी आदि चार दिन तक मृदु (सुखस्पर्श)वायु, शुभ(पुर्व उत्तर या ईशान का) वायु चले तथा स्निग्ध और विनागतिके वादल हो तो धारणा शुभ होती है, इससे संवत्सर श्रेष्ट होता है ॥४६॥ इन्हीं दिनोंमें स्वाति आदि चार नक्षत्रोंमें वर्षा हो जाय तो धारणा परिश्रुत हो जाती है इसलिये क्रमसे श्रावणादि चार महीनों में वर्षा न हो ॥४७॥ अष्टम्यादि चारों दिन उपर के श्लोक ४६ के अनुसार एकसे (यथार्थ) निकले तो सुभिक्ष तथा सुखकारक जानना । यदि यथार्थ न निकले तो वर्ष अच्छा न हो और चौर तथा अग्नि का भयदायक हो॥४८॥
पृष्ठ-१५६ श्लोक- ३६ - उदगवीथी याने आकाशमै उत्तरमार्गके माने हुए नव नक्षत्रों पर गुरु हो तो सुभिक्ष और कल्यागा कारक है तथा मध्यमार्ग के नक्षत्रों पर हो तो मध्यम फल कहना ।।
पृष्ट- २५२ श्लोक. ५११... मिगमा वाय न वाइश्रा याने सूर्य के मृगशिर ननअमें वायु न चले ।
पृष्ठ २८४--- श्लोक १३७----मेष प्रवेश लग्नमें तथा वर्षप्रवेश लममें यदि सप्तम स्थानमें पापग्रह हो तो धान्यका विनाश हो ॥१३॥
पृष्ठ २६५ श्लोक- २०८- मूलनक्षत्र के चरणों में क्रमसे वर्षा हो तो आषाढादि चार महीनों में क्रम से वर्षा का अवरोध हो । इसी प्रकार श्रवण और धनिष्ठा के चरणों में वर्षा न हो तो क्रमसे आषाढादि चार मासमें वर्षाका अभाव हो ॥२०८॥
पृष्ट ३३६ श्लोक. ३- प्राषाढशुक्ल प्रतिपदाको पुनर्वसु नक्षत्र हो तो धान्य की प्राप्ति हो ।
पृष्ट. ३६ ४ श्लोक १५२– श्राखा रोहिण नवि मिले पोसी मूल न होय' याने अक्षय तृतीया को रोहिणी और पौष अमावस को मूल न हो तो
पृष्ठ ३७२ श्लोक १६.८- 'आश्विन अमावस' के स्थान पर कोई भी मास की अमावस समझना .
पृष्ठ ३७६ श्लोक २२५-- मार्गशीर एकादशी को पुनर्वसु नक्षत्र हो तो कपास कई सूत आदि का संग्रह करने से वैशाखमासमें लाभदायक होगा ॥२२॥
"Aho Shrutgyanam'