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गुरुचारफलम्
वृषराशिस्थगुरुवक्रफलम्---- वृषराशिगते जीवे वक्री स्यान्मासपञ्चके । वृषभादिचतुष्पादे तुलाभाण्डे महर्षता ॥१४॥ संग्रहः सर्वधान्यानां मासाष्टके महर्घता। श्रीः श्रावणे भाद्रपदे आश्विने कार्तिके तथा ॥१४८॥ तत्परं सर्वधान्यानां चतुष्पदान् विशेषतः । विक्रयाद् द्विगुणो लाभस्त्रिगुणस्तु चतुष्पदे ॥१४९॥ मिथुनराशिस्थगुरुवक्रफलम् --..... मिथुनस्थः सुरगुरु-र्विकारं कुरुते यदा । अष्टमासी भवेत् क्रूरा चतुष्पदमहर्षता ॥१५०॥ मार्गशीर्षादयो मासाः सुभिक्षं वसनं भुवि। . लोकः सर्वो भवेत् स्वस्थो दुर्भिक्षं क्वचिदादिशेत् ॥१५१।। कर्कराशिस्थगुरुवक्रफलम् --- कर्कराशिगतो जीवो यदा वक्री भवेत् तदा । ........ दुर्भिक्षं जायते घोरं राजानो युद्धतत्पराः ॥१५२॥
यदि वृषराशिका बृहस्पति पांच मासमें वक्री हो जाय तो वृषभादि पशु और तुला (मानद्रव्य वर्तन) तेज हो !!१४७॥ सब धान्योंका संग्रह करना आठवें मास तेजी रहें । श्रावण भाद्रपद आश्विन और कार्तिक इन चारों मासके ॥ १४८ ।। उपरान्त सब धान्य और विशेष कर पशुओंको बे. चनेसे दूना और तीगुना लाभ हो॥१४६॥ इति वृषराशि स्थगुरु वक्रफल ॥
यदि मिथुनराशिका बृहस्पति वक्री हो जाय तो पशुओंका भाव तेज हो ॥१५०॥ मार्गशीर्षादि महीनोंमें भूमी पर सुभिक्ष हो, सब लोक सुखी और कभी कहीं दुर्भिक्ष हो । १५१ ॥ इति मिथुनराशिस्थगुरुवक्रफल ॥ * जब कर्कराशिका बृहस्पति वक्री हो तब घोर दुर्भिक्ष हो. राजा लोग युद्ध करने के लिये तत्पर हों ॥ १५२ ॥ राष्ट्रभंग तथा वैर आदिका उ
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