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गुरुचारफलम्
सर्वत्र महर्घत्वं चैत्रेऽपि च पञ्च फाल्गुने मासे ॥१२२॥ घृततैलपट्टसूत्र-कम्बलवस्त्राणि चेक्षुरसवस्तु । आषाढे तु महर्य मेधेऽल्पेऽपि च सुभिक्षं स्यात् ॥१२॥ दशभिः स्कन्दकैर्धान्य-मणं षोडशभितम् । तैः पञ्चदशभिस्तैल-माश्विने कार्तिके स्मृतम् ॥१२४॥ अष्टभिः स्कन्दकैलेभ्या गोधूमामणिमानयम् । तैः सप्तदशभिस्तैलं चतुर्भिः शेषधान्यकम्॥१२५॥ कुम्भरा शिस्थगुरुफलम्--- कुम्भे गुरौ वज्रदण्डो मेघो माघादिवत्सरः । सुभिक्षं जायते तत्र ऋषिदेवद्विजार्चनम् ॥१२॥ काश्यं च पित्तलं लोहं मञ्जिष्ठा त्रपुकाञ्चनम् । एषां मासत्रयं यावत् समर्घत्वं प्रजायते ॥१२६॥ मौक्तिकं च प्रवालानि मनिष्ठापकूलकम् । पूगी रूप्यं नारिकेलं श्वेतवस्त्रं महघेकम् ॥१२७॥ माघफाल्गुनचैन्नेषु रोगामासत्रये मताः। गुड आदि ये आषाढ़ मासमें तेज हो, थोड़ी वर्षा होने पर भी सुभिक्ष हो ॥ १२३ ॥ आश्विन और कार्तिक मासमें दश स्कंदोंसे एक मणभर धान्य, सोलह स्कंदोंसे मणभर घी और पन्द्रह स्कंदोंसे मणभर तेल बिके ॥१२४।। आठ स्कंदोसे मणभर गेहूँ,सत्रह स्कंदोंसे मणभर तेल और चार स्कंदोंसे मणभर सब धान्य बिके ।। १२५ ।। इति मकरराशिस्थगुरुका फल ॥
जब कुंभराशिका बृहस्पति हो तब माघसंवत्सर कहा जाता है। इसमें वज्रदयड नामका मेंच वर्षता हैं, सुभिक्ष और देव मुनियों का पूजन हो ॥१२५॥ कांसी पित्तल लोहा मँजीठ त्रपु (सीसा) और सोना ये तीन मास तक सस्ता हो ॥ १२६ ।। मोती मूंगे मँजीठ रेशम सुपारी चांदी श्रीफल और श्वेतवस्त्र ये तेज भाव हो ।। १२७ ॥ माघ फाल्गुन और चैत्र ये तीन महीने रोग हो,
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