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मेघमहोदये उत्पातो मरुदेशे स्यान्मार्गे चौरभयं तथा। कोटजेसलमेर्वादौ परचक्रागमो मतः ॥ ८९ ।। स्कन्दकैर्दशभिश्चैक-मणधान्यं च लभ्यते । कार्तिके मार्गशीर्षे वा मेघस्त्वाषाढके महान् ।। १० ।। प्रयोदशस्कन्दकैस्तु खण्डामणमवाप्यते । पञ्चाशत्स्कन्दकैर्मिश्री-शर्करामणविक्रयः ॥ ९१ ।। रसक्रयाणकादीनां संग्रहेण चतुर्गुणः ।
लाभश्चतुर्थभासे स्याद् धातूनां च समर्थता ॥ ९२ ॥ वृश्चिकराशिस्थगुरुफलम्-- वृश्चिकस्थे गुरौ सोम-मेघः कार्तिकमासतः । संवत्सरः खण्डवृष्टि-र्धान्यमल्पं भयं महत् ॥१४॥ गृहे परस्परं वैर-मष्टौ मासा न संशयः । भाद्राश्विनकार्तिकाख्या-स्त्रयो मासा महर्घताः ॥१४॥ ततः सुभिक्षं जायेत मन्दवृष्टिश्च मण्डले । हो कोट जेसलमेर आदिमें शत्रुओंका आगमन हों ।। ८६॥ दश स्कंदोसे एक मण धान्य चिकें। कार्तिक और मार्गशीर्षमें अथवा माघ और आषाढमें ॥ १० ॥ तेरह स्कंदोंसे मण खांड बिके और पन्द्रह स्कन्दोंसे एक मण मीश्री और सक्कर विकें | ६१ ॥ रस और ऋयाणा आदिका संग्रह करने वालेको चौथे मासमें चौगुना लाभ हो और धातु सस्ती हो ॥ ६२ । इति तुलाराशिस्थगुरुका फल ॥
___जब वृश्चिकराशिका बृहस्पति हो तब कार्तिकसंवत्सर कहा जाता है, इसमें सोम नामका मेघ बरसे, खण्डवर्षा धान्य थोडा और भय अधिक हो ॥ ६३ ॥ घरों में परस्पर द्वेष आठ मास तक हो इसमें संशय नहीं , भाद्रपद आश्विन और कार्तिक ये तीन मास तेजी रहे ।। ६४ ॥ पीछे सुभिक्ष हो देशमें थोड़ी वर्षा, पश्चिमप्रान्तमें जीवकी वर्षा और वायत्र्य प्रा
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