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मेघमहोदयः
क्षयश्चतुष्पदानां स्याद् दुर्भिक्षं मृगसैन्यकन् । हेमरूप्यं तथा तानं परत्रं प्रवालक.म् ।। ६२॥ मौक्तिकं द्रव्यमन्नादि लोकोत्त्या लोकष्क्रियः । मञ्जिष्ठाश्वेतवस्त्राणां समर्घ सुभटक्षयः ॥१३॥ गोधूमशालितैलाज्यं लवणं शर्करा पुनः । माषा महर्धा जायन्ते पापकर्मरतो जनः ॥६४॥ कार्तिकद्वितये धान्य-पृततैलमहर्घता। पष्टसूत्रं च वस्त्राणि जातीफललवङ्गकम् ॥६५॥ मरिचं शीतकालेऽथ संग्राह्याणि वणिगजनैः । धेशाखज्येष्ठयोर्लाभो द्विगुणस्तस्य विक्रयात् ॥६६॥ वर्षाकाले महावर्षा सर्वधान्यसमर्थता । सुनिक्षं तिलकर्पास-चणकानां गुडस्य च ॥६॥ गोधूममाषतधरी-युगन्धरीमुद्गकोद्रवादीनाम् ।
आषाढे संग्रहतो लाभः पुनरुष्णगो द्विगुणः ॥१८॥ सिंहराशिस्थगुरुफलम् - - दुर्भिक्षता. सोना चांदी वस्त्र सूत मूंगा ।। ६२ । मोती द्रव्य और अन्न मादि चतुगई की बातोंसे विकें. मँजीठ और श्वेतवस्त्र सस्ते हों. और सु. भटोंका नाश हो ॥ ६३ ॥ गेहूँ चायल तेल घी लू ग सकर और उर्द ये महंगे हों और मनुष्य पापकर्मों में लीन हो ॥ ६४ ॥ कार्तिक मार्गशीर्ष में घान्य घी तेलकी तेजी, रेशम यत्र जायफल लोंग ॥ ६५ ॥ मिरच ये व्यापारीयों को शीतकाल में संग्रह करना उचित हैं, उसको शाख ज्येष्ठ में बेवनेसे दूना लाभ होगा ॥ ६६ ॥ वर्षाऋतुमें बड़ी वर्षा हो, सब धान्य सस्ते हों. सुभिक्ष हो. तिल कपास चणा गुड गेहूँ उर्द तुंबरी जुमार मुंग और कोमा मादि पापाढमें संग्रह करनेसे श्रीमऋतुमें दूना लाभ होगा ॥ १७ ॥ १८॥ इति कर्कगशिल्यगुरुका फल ॥ . ..
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