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संवत्सराधिकार जलवृष्टिः सौराष्ट्र ग्रामप्रवाहः, अन्नं समर्घ, आवणेऽल्पमेघः, किश्चिदविग्रहः, भाद्रपदेऽल्पवर्षा रोगपीडा, आश्विनेऽने स. मर्घ रसकसवस्तु समर्घ, कार्तिकादिमासपश्चके धान्यं मह विवाहादिकं नास्ति, अश्वपीडा पश्चिमायां सुभिक्षम् ॥५८॥ क्रोधने शनिः स्वामी, रोगा बहुलाः, मन्दवृष्टिः प्रजापीडा, उत्तरापथे दुर्भिक्ष लोका निर्धनाः, चैत्रे वैशाखेऽल्पमेघोऽन्नसमर्घता, ज्येष्ठे मन्दनारोगपीडा, अन्नसमता, आषाढे श्रावणेऽल्पवर्षा, धान्ये द्विगुणताभः, भाद्रपदे मेघोऽलसमर्घ, प्रा. श्चिने रोगपीडा, कार्तिके विग्रहः धान्यं समर्थ, मार्गशीर्षे धान्य समता अकस्माद् उत्पातः, पौषे समता वणिकपीडा अन्नवस्तु च महर्घम् ॥५६॥ क्षयसंवत्सरे राहुः स्वामी, चैने करकापातः, वैशाखे उत्पातः, भूमिकम्पः, ज्येष्ठापाढयो रोगचालक; नवीनमुद्रा उदयोऽल्पमेघोऽनं समघ, भाद्रपदे ख. में अनाजकी तेजी, शुक्ल पक्षमें महावर्षा, आपादमें बड़ी जलवर्षा, सोरठदेशमें गांवोंका प्रवाहा (पानी खिंचाई जाना) अनाज सस्ता, श्रावगमें थोड़ी वर्मा, कुछ वित्रा , भाद्रपद थोड़ी बर्षा , रोगपीडा , आश्विन अनाज सस्ता, रसकस वस्तु सस्ती, कार्तिकादि पांच मास धान्य तेज, वीवाहादिका अभाव, घोडे को पीडा, पश्चिाने मुभिः ॥ ५८ ॥ क्रोधनवर्षका स्वामी शनि रोग अधिक, मंद वृषि, प्रजाको पीड़ा, उत्त में दुर्भिक्ष, लोक धन रहित , चैत्र वैशाखमें थोडी वर्षा, अनाज सस्ता, ज्येष्ठ मंदा , रोगपीडा, अन्न भाव सम, आषाढमें और श्रावणमें थोड़ी वर्षा, धान्य दूना लाभ,भाद्रपद में वर्षा, अनाज सस्ता, ग्रा.श्चन में रोग पीडा, कार्तिकमें विग्रह, धान्य सस्ता मार्गशीर्ष में धान्य सम, कस्माद् उत्पात, पौषमै सस्ता, व्यापारियोंको पीटा अनाज रस्तु तेन ॥ ५६ ॥ क्षयसंवत्सरका स्वामी राहु , चैत्रमें अोलेका गिरना, वैशाखमें उत्पात, भूमिकंप, ज्येष्ट आपादमें रोग, नवीन मुद्रा,थोड़ी
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