________________
संवत्सराभिकार: घेता, कार्तिकादिमासत्रये समर्घता, कणकलशिका ११ फदियानाणकैः ।। ३९॥ पराभवसंवत्सरे केतुः स्वामी, बादशमा. सवर्षा, मध्यमवृष्टिः, चैत्रे वैशाखे चान्नं महध, मेघगर्जितवि. धुवायवः, ज्येष्ठे धान्यसंग्रहः, उद्दण्डवायुः, आषाढेऽल्प. मेघः, अन्ने द्विगुणो लाभः, श्रावणे महती वर्षा, अन्नसमता, भाद्रपदे खण्डवृष्टिः परं दुर्भिक्षं, आश्विने किञ्चिद् लोकसुखं परं धान्यरसवस्तु महर्धमेव धातुसमर्घता, कार्तिकादिमासपञ्चके समता, पश्चिमायामन्नसमता, सिन्धुदेशाद् धान्यागमः ।। ४०॥ इति मध्यमविंशतिका पूर्णा ॥
प्लवङ्गानामसंवत्सरे ब्रह्मा स्वामी, चैत्रे वैशाखे महर्घता, ज्येष्ठमध्ये राजपीडा, आषाढेऽल्पमेघः, भूमिकम्पः, हस्तिपीडा, तुरङ्गममद्घता, श्रावणे महामेघो भाद्रपदाष्टमीतो महामेघः, आश्विने रोगचालकः, रसमहर्घता, फाल्गुने कण. का भाव तेज; सोना आदि धातु तेज | कार्तिकादि तीन मास अनाज के भाव सस्ता, ११ फदिया का कलशी धान्य ॥ ३६॥ पराभववर्षका केतु स्वामी, बारह मास में मध्यम वर्षा ! चैत्र वैशाखमें अनाज तेज, मंघकी गर्जना, बिजली कडके, वायु चले । ज्येष्टमें धान्य का संग्रह करना चाहिए । आषाढमें वर्षा थोड़ी अनाज में दूना लाभ । श्रावणमें बड़ी वां, अनाज भाव सम। भाद्रपद में खण्डवृष्टि पीछे से दुर्भिक्ष ! आश्विनमें कुछ मुख पीछे धान्य और रस की बस्तु महँगी, धातु सम । कात्र्तिकादि पांच मास सम, पश्चिम में अनाज भाव सम सिन्धु देश से धान्य का आगमन ॥ ४० ॥ इति मध्यम विंशतिका पूगा ॥
प्लवंगवर्षका स्वामी ब्रह्मा, चैत्र वैशाखमें अन्न तेज, ज्येष्टमें राजपीडा, आषाढमें थोड़ी वर्षा, भूमिकम्प, हाथीको पीडा, घोड़े तेज, श्रावण में महामेघ, भाद्रपद अष्टमीसे महामेघ, आश्विनमें रोग, रस महँगे, फाल्गुन में दश फदियाका कलशी धान्य हो, घोड़ा और भैसको पीडा, लोक पीडा
"Aho Shrutgyanam"