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संवत्सराधिकार सर्वधातुसमर्घता, गोधूमानां महार्घता, कार्तिकेऽनं समध, लोकः सुखी, मण्डपाचले विग्रहः, पोषादिमासत्रयेऽतिमभिक्षं राजा राज्यसुस्थः ॥३५॥
शुभकृवत्सरे गुरुः स्वामी, अतिवर्षा, राजाप्रजा सुखी न वर्तते, उत्तरापथे वह्निभयं, चैत्रे वैशाखे समर्घता, धातुसमर्घता, श्रावणे नवमीतिथितो वर्षा, अन्नसमर्थता, भाद्रपदे महामेघः, अन्नकलशिका एका फदियानाकैरष्टभिः, घृतं तैलं समर्घ, कार्तिकादिमासत्रये युगंधरीगोधूमचणकतिलमुद्गचवला इत्याद्यन्नं समर्घ, राज्ञां परस्परं विरोधा, ज्ये. ष्ठादित्रिमासेषु सर्ववस्तु समर्घ, फाल्गुने किञ्चिदुत्पातः , मरुदेशे रोगः परं सुभिक्षम् ॥ ३६॥ शोभने त्विदं फलं शुकः स्वामी, राज्ञां प्रजानांच सुखं, अतिवर्षा, चैत्रादिमासत्रयेधान्यं समर्थ, राजविग्रहः, किञ्चिदुत्पातः, आषाढेऽल्पमेघः, श्रावणेऽतिवर्षा, परं लोकपीडा, भाद्रपदे महान्मेघः, श्चिनमें सब वस्तु सस्ती; गेहुँ तेज; कार्तिकमें अनाज मस्ता; लोक सुखी; मंदपाचलमें विग्रह; पौषादि तीन मास सुभिक्ष; राजा प्रजा सुखी ॥ ३५ ॥ शुभकृद् वर्षका स्वामी गुरु, वर्षा अधिक, राजा तथा प्रजा सुखी नहीं,उत्तरमार्ग में अग्निका भय, चैत्र वैशाख में अन्नभाव सस्ता, धातुभाव सस्ता, श्रावणको नवमी से वर्षा, अन्नभाव सस्ता, भाद्रपद में बड़ी वर्षा, आठ फदिया का कलशी धान्य, घी तेल सस्ता, कार्तिकादि तीन मास में युगंधरी गेहूँचणा तिल मग चवला आदि अन्न सस्ते, राजाओं में परस्पर विरोध, ज्येष्ठादि तीन मास सब वस्तु सस्ती, फाल्गुन में कुछ उत्पात, मरुदेश में रोग परंतु सुभिक्ष हो ॥३६॥ शोभनवर्ष का स्वामी शुक्र, राजा प्रजा को सुख, वर्षा भधिक, चै. त्रादि तीन मास धान्य सस्ता , राजविग्रह, किश्चित् उत्पात, भाषाढमें थोड़ी मर्षा, नाश्रण में वर्षा भभिक परंतु लोकपीला, भादों में महामेब, माबिन में
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