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________________ संवरतराधिकार विः स्वामी, अकाले वर्षा राजविरोधः,देश उक्सामरुधरायां दुर्भिक्ष, चैत्रादिमासचतुष्टयं महार्घता, कणकलशिकां प्रतिफदियानाणकैरेकशतेन लाभः, श्रावणमासखये मेघवष्टिर्नास्ति रौरवं दुर्भिक्षं, आश्विने उत्पातभूमिकम्पाः, कासिके छत्रभङ्गः, सुवर्णरूप्यताम्रकांस्यसर्वधातुसमर्घता, कणकलशिकारकाः२०फदियानाणकानामेकशतं लभ्यते।२४॥ खरसंवत्सरे चन्द्रः स्वामी, चैत्रादिमासपञ्चके महती वर्षा, सु. भिक्ष प्रजासुखं सर्वलोके गुरूणां महत्वं, पश्चिमायां सुभिक्षं । आश्विनेऽन्नसमता रसमयता, मञ्जिष्ठासुहागावस्तुतो मरुधरायां त्रिगुणो लाभः, म्लेच्छक्षयः परं रोगपीडा सर्वधान्यनिष्पत्तिः प्रजासुखं, कार्तिकादि मासपञ्चकं मध्यम सर्वधातुसमर्थता ॥२५॥ नन्दने भौमः स्वामी, प्रजासुखं सर्वधान्यसमता, चैत्रमध्ये करकाः पतन्ति । वैशाखे धान्यं महधं प्रचण्डवायुः।ज्येमें अन्नभाव तेज ॥ २३ ।। विकृतिवर्षको स्वामी रवि है, अकालमें वर्धा, राजाओंमें विरोध, देशका उजाड़, मरुधरमें दुकाल, चैत्रादि चार मास तेज, धान्य एक सौ फदियाका कलशी, श्रावण भादोंमें मेघ वर्षा न हो और बड़ा दुष्काल हो, आश्विनमें उत्पात भूमिकंप, कार्तिकमें छत्रभंग, सोना चादी ताबा कांशा भादि सब धातु सस्ते हो ॥ २४ ॥ खरेवर्षका स्वामी चन्द्र है, चैत्रादि पांच मासमें बड़ी वर्षा, सुकाल प्रजाको सुख, सब लोगों में गुरु जनों का सन्मान, पश्चिममें सुकाल । आश्विन में अनाज समान, रस महँगा, मजीट सुहागा से मारवाडमें तीगुना लाभ, म्लेच्छका विनाश परंतु रोग पी. डा, सब धान्य की निष्पत्ति, प्रजा को सुख, कार्तिकादि पांच मास मध्यम और सब धातु सस्ती हो ॥ २५ ॥ . नन्दनवर्ष का स्वामी मंगल है, प्रजामें सुख, सब धान्यभाव सम, चैत्रमें "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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