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________________ (१२६) मेवमहोदये भिक्ष, आषाहे प्रलयः, श्रावणे भाद्रपदे महामेघः, प्रजासुखं, सर्वधान्यंसमधे, सर्ववस्तुसमर्घता, आश्विने रोगः, सर्वरससमता, कार्तिकादिमासपञ्चके सर्वान्नसमता ।१४॥ वृषभे भौमः स्वामी, वर्षा बहुला परं नृपाणां पीडा, छत्रभङ्गः, ज्येष्ठे वै राखेऽन्न लमर्यता; धान्ये त्रिगुणो लाभः,आषाढेऽन्नमहाघ'ता, श्रावणेभाद्रपदे महामेघः, आश्विने सर्वधान्यसमता, घृतमहाघता पश्चिमेऽन्नं महाध देशा उद्वसाः पश्चिमायां किश्चित्सुभिक्षं, आश्विने मेघः सर्ववस्तुसमर्वता, कार्तिके किश्चिद्रिष्टं, मार्गशिरसि दौस्थ्य, पौषादिमासत्रयं महाधं परं मध्यमः समयः ॥१५॥ चित्रभानौ बुधः स्वामी, लोकः सुखी, पूर्वम मेघः, पश्चान्महती वर्षा, सर्वधान्यघृतसमता वैशाखेऽन्नं समभावेन, ज्येष्ठादित्रये महान् मेयः सर्वधान्यसमर्थता भाद्रादिमा सवये रोगार्तिः, कार्तिके मारिभयं, मार्गशिरोळ्येऽरिष्टं,माघ. बड़ी वर्षा, प्रजा मन्त्री, सब धान्य सस्ते, सत्र वस्नुके मात्र समान, असोज में रोग और रस सब सनान, कार्ति दि पांच म.स सब अन्न समान हो ॥ १४ ॥ कृपभवर्ष का स्वामी मंगल है, वर्षा बहुत परन्तु राजाओंको पीडा और छत्रभंग हो, येष्ट वैशाम्बी अन्नभाव समान, व्यापारियों को अन्न से तिगुना लाभ, आपाढा अन्नमाव तंज, श्रावण भादों में बड़ी वर्षा, आधिनमें सत्र धान्य समान, घी तेज, पश्चिम में अन्नभाव तेज, देशका विनाश और कुछ मुभिक्ष, आश्विनमें वर्षा, सब वस्तु सस्ती, कात्तिकमें कुछ दुःख, मार्गशीर्ष में दु:ख, पोषादि तीन मास अन्न भाव तेज पीछे समय मध्यम हो ॥ १५ ॥ चित्रभानुवर्षका रवाली बुध है, लोक मुखी, पहले थोड़ी वर्मा पीछे बहुत वर्षा, सब धान्यके और बीके भाव समान, वैशाखमें अन्नका भाव समान, ज्येष्टादि तीन मास महाव, सत्र धान्य सस्ते, भाद्रपदादि दो महीने रोग, कार्तिक में महामारि का भय, मार्गशीर्षादि दो महीने "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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