________________
संश्त्सराधिकारः
(१२३) चैत्रे समता, पैशाखे महर्घ सर्वधान्यं द्विगुणो लाभः, आषाहे श्रावणे किश्चिद्वर्षा, भाद्रे वर्षा, आश्विने रोगबाहुल्यं, कातिक उत्तमः, मार्गशीर्षादिमासचतुष्टयं मन्दम, राजविड्वरं महाजनपीडा ॥८॥ युवावत्सरे शुक्रः स्वामी, भूकम्पजलभयं बहुलं, चैत्रदये उत्पातः, ज्येष्ठे रोगः, आषाढे शुक्लपक्षे महान्मेघः, श्रावणे वायुर्वाति, अन्नं महर्वम्, भाद्रपदे दिन १४ महावृष्टिः, व्याकुलता, राजविग्रहः, उत्तराद्वदेशे दुर्भि
क्षं रौरवं, पूर्वस्या निष्फला कृषिः, दक्षिणस्यां वैरविरोधो मागे विषमता, पश्चिमायां लोकपीडा पश्चाद् दुर्भिक्षं, सर्वर सेषु समता, कार्तिकादिभासद्रयनुत्तमम्, पौषो माघश्च मध्यमः, फाल्गुनमासे किश्चित् क्लेशः, माघादी मार्गे विग्रहः ॥९॥ धातृवत्सरे शनिः स्वामी, चत्रे वैशाग्वे च सर्वधान्यमहता, ज्येष्ठमासे समता, आषाढेऽल्पमेघः वृततैलयुगन्धरीको समञ्जिष्ठामरिचपूगीमद्घता, श्रावणे संवैधान्यसमर्थना, भावस्तु ये सब तेज भाव हो, चैत्रो समान, वैशास्त्र सब धान्य महँगा होने से दृना लाभ, आपाट श्रावणमें कुछ वर्षा, भाद्रपद अधिक वर्षा,अश्विनमें गेग अधिक, कार्तिकमें उत्तम, मागीयांदि चार मासु मंदा रहे, गजाओंमें युद्ध तथा महाजनोंको पीडा हो ॥ ८॥ युवावर्षका स्वामी शुक्र है, भूकम्प और जलका भय अधिक हो, चैत्र वैशाखमें उत्पात; ज्येष्टमें रोग, आषाढशुक्लपक्षमें महामेघ, श्रावणमें पवन लै, अन्नका भाव तंज, भादो दिन १४ बड़ी वर्मा, न्याकुलता, राजविग्रह, उत्तरार्द्ध देशमें दुष्काल और दुःख, पूर्वमें ग्वती निमल. दक्षिणमें वैर विशे में, मार्गमें विषमता, पश्चिममें लोकपीड़ा पीछे दुष्काल, सा रसके भाव समान, कार्तिकादि दो मास उत्तम, पौष और माव मध्यम फालगुनमें कुछ क्लेश, मायकी आदिम मार्ग में विग्रह हो॥ ॥ धातृवर्षका स्त्रामी शनि है, चैत्र वैशाम्बम सत्र धान्यके भाव तेज, ज्येष्टमें समान, आषाढमें थोडी
"Aho Shrutgyanam"