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संवत्साधिकारः
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न्यत् सर्वमहाघम्, कार्तिकादिमासचतुष्टये सर्वधान्यं समर्घम्, फाल्गुनमाने विड्वरम्, संवत्र विग्रहः, लोकग्रामपीडा, देशे मुआकुलता, शून्यत्वं ग्रामेषु ॥३॥ प्रमोदे रविः स्वामी, मध्यमें वर्षम् , अल्पवृष्टिः खण्डमण्डले, मेदपाटपीडा, देश उद्धसा, मलेच्छवर्गक्षयः, छत्रमः, पर्वते तटे स्वल्पा वसतिः, तिलङ्ग राजविड्वरम्, चैत्रे वैशाखे च महता, ज्येष्ठेरोगपीडा, भाषादादिभासत्रयेऽल्पमेघः, आश्विनमासे किञ्चिद्वर्षा, धान्यस्य कलशिका त्रयोदशफदिधानाणकैः, कार्तिकादिमास पत्रके महम्, अतिवायुर्वाति, व्यापारिलोकपीडा, खण्ड
, पहलादिमहर्घता, कार्तिकादिमासचतुष्टये सर्वरस
ला, फाल्गुने मध्यमः ॥४॥ प्रजापतिवत्सरे चन्द्रः साली, बादशापि मासाः शुभाः अल्पमेघवर्षा, आश्विने
पाइल्यम्, धान्यस्य कलशिका पचत्रिंशत्फदियाप्रक, कार्तिकादिमासघ्यं मन्दं, पौषादिमासत्रयेसब वस्तु महँगी हो, कार्तिकादि चार मास सत्र धान्य समान, फाल्गुनमास में वित्रह, ग्रामी ग लोकोंको दुःख, देशमें व्याकुलता और गांवों में शून्यता हो॥३॥ प्रमोदवर्षका स्वामी रवि है, वर्ष मध्यम, खण्डदेशमें थोड़ीवर्षा मेदपाट में दुःख, देश उद्वेग, मलेच्छवर्णका क्षय, छत्रभंग , पर्वतके तटमें थोड़ी वसति, तैलङ्गमें राजविग्रह, चैत्र वैशाश्वमें तेजी,ज्येष्टमें रोगपीडा पापादादि तीन मासमें अल्पवर्षा, आश्विनमासमें कुछ वर्षा, तेरह फदियाका कलशी धान्य चिके, कार्तिकादि पांच मास तेजी, बहुत वायु चले, व्यापारी लोगों को दुःख, खण्डवृष्टि, पकूल ( रेशमीवस्त्र आदि ) तेज बि, का--- तिकादि चार मास सब रसवाली वस्तु तेज और फाल्गुनमास में समान भाव रहै ॥ ४ ॥.प्रजापतिवर्षका स्वामी चन्द्र है, बारह महिने श्रेष्ट रहे, थोड़ी वर्षा, माबिन रोगकी अधिकता, पैतीस फदियाका कलशी धान्य बि
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