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________________ संवत्सराधिकारः अल्पवृष्टिश्च विज्ञेया क्रोधः क्रोधिनि वत्सरे ॥ १८ ॥ : सर्वत्र जायते क्षेमं सर्वसस्यमहर्धता । निष्पत्तिः सर्वसस्यानां वृष्टिश्च प्रबला पुनः ॥ १६ ॥ विश्वासौ सुवृष्टिश्च काष्ठलोहमहर्घता । पार्थिवाश्च माण्डलिका सामन्ता दण्डनायकाः ||२०| पीडिताच प्रजाः सर्वाः क्षुधार्त्ताः स्युः पराभवे । धान्यौषधानि पीडयन्ते ग्रीष्मे वर्षति माधवः ||२१|| । इति द्वितीया वैष्णवीविंशतिका । प्लवङ्गे पीडिता लोकाः सर्वे देशाश्च मण्डलाः । जायन्ते सर्वसस्यानि कुत्रापि निरुपद्रवः ॥ १॥ सौम्यदृष्टिभवेद् राजा कीलके च शुभं भवेत् । सुभिक्ष क्षेममारोग्यं सर्वोपद्रववर्जितम् ||२|| सौम्ये राजा प्रजा सौम्या भुवि सौम्यं प्रवर्त्तते । तोयपूर्णा मही मेचे महावर्षा दिने दिने ॥३॥ (१०५) न्य तेज हों, प्रबल वर्षा बरसे और सब धान्य पैदा हों ॥ १६ ॥ पराभववर्ष अच्छी वर्षा हो, काष्ट और लोहा तेज हो, देशका राजा माण्डलिकरा जा, सामन्त और दण्डनायक आदि दुःखी हों, सब प्रजा क्षुधा से दुःख पावे, धान्य और औषधि का नाश हो और ग्रीष्मऋतु में वर्षा बरसे ॥ २०-२१ ॥ इति द्वितीया वैष्णवी विंशतिका | प्लवङ्गवर्ष में सब देशके और प्रान्तके लोग दुःखी हों कोई जगह उपद्रव रहित भी हो और सब धान्य पैदा हों ॥ १ ॥ कीलकवर्ष में शुभ हो, राजा अच्छी नीतिवाले हों सुकाल हो, लोग कल्याणवाले आरोग्यवाले और उपद्रवरहित हों || २ || सौम्यवर्ष में राजा और प्रजा सुखी हों, पृथ्वी पर सुख फैलें, पृथ्वी वर्षा से पूर्ण हो और प्रत्येक दिन बडी वर्षा हो ॥ ३ ॥ साधारण वर्ष में राजा उपद्रव रहित हो, देश और प्रान्त में जल वर्षा हो और १४ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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