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द्वितीय कल्लोल
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जातः सन् मुच्यत इत्यर्थः। चन्द्र जीवेक्ष्ये गुरुदृण्टेऽन्यकरस्थः सन् जोवति सुखी दीर्घायुश्च स्यात् । अपि शब्दात् पुनश्चन्द्र पारार्कवीक्षिते यो जातः स त्यक्तः सन् जीवति ॥२०॥
एक राशि में रहे हए शनि और मंगल से नववें पांचवें या सातवें स्थान में चंद्रमा रहा हो तो जन्मा हग्रा बालक माता से छोडा जाय । उपरोक्त योग होने पर यदि चंद्रमा को गुरु देखता हों तो माता से छोड़ा हया बालक दूसरे हाथ से पाला जाय और सुखी तथा दीर्घायु होवे। उपरोक्त योग होने पर चन्द्रमा को सूर्य और मंगल देखते हों तो माता से छोड़ा हुआ बालक जीवित रहता है ॥२०॥ अथ योगान्तरमाह
लग्नेऽब्जेऽर्केण मन्देन वा दृष्टेऽस्ते कुजे मृतिः ।
योगेऽस्तायगयोराारयोस्त्यक्तो विनश्यति ॥२१॥ अब्जे चंद्रे लग्ने लग्नस्थेऽर्केण, वाऽथवा मन्देन शनिना दृष्टे, अस्ते सप्तमस्थे कुजे त्यक्तस्य मृतिर्भवति । लग्नस्थे चद्रऽर्केण दृष्टे सतोति योगे आारयोः शनिकुजयोरस्तायगयोः सप्तमलाभयोरेकतमस्थयोर्मात्रा विमुक्तो विनश्यति । एषो द्वितीयो योगः ॥२१॥
लग्न में रहा हया चंद्रमा को सूर्य या शनि देखते हों और सातवें स्थान में मंगल बैठा हो तो बालक माता से छोडा जाय और मर जाय ११ अथवा लग्न में रहा हुया चंद्रमा को सूर्य देखता हो तथा शनि और मंगल सातवें या ग्यारहवें स्थान में रहे हों तो बालक माता से छोडा जाय और मर जाय २ ॥२१॥ अथ तज्जीवननाशनयोर्योगमाह
यद्वर्णेशशुभेक्ष्येऽब्जे जीवेत्तद्वर्णहस्तगः ।
वेष्टेन वाकिरणा दृष्टे नश्येत् तत्करतः स च ॥२२॥ अब्जे चंद्र लग्नस्थे यद्वर्णेशशुभेक्ष्ये यस्य वर्णस्य विप्रक्षत्रियवैश्यशूद्राणामोशः स्वामी यः शुभग्रहः सबलस्तेनेक्ष्ये दृष्टे तद्वर्णहस्तगतस्तस्य विप्रादिवर्णस्य हस्तगतो जीवेत् । वाथवा च शब्दाच्चन्द्र लग्नस्थे इष्टेन शुभेन पाकिणा शनिना च दृष्टे, शुभशन्योर्मध्याद् यो बलवान् तत्करतस्ताहग्वर्णहस्तगतः सन्नश्येत् ॥२२॥
लग्न में रहे हुए चंद्रमा को कोई बलवान शुभ ग्रह देखता हो वह ग्रह जिस वर्ण (जात) का हो, उसी जाति वाले के हाथ से माता से छोडा हुअा बालक जीवे। अथवा लग्न में रहा हुआ चंद्रमा को कोई शुभ ग्रह और शनि देखते हों, उनमें से जो बलवान हो उसी जाति वाले के हाथ से बालक का नाश होगा ॥२२॥
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