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________________ द्वितीय कल्लोलः २३ रम्यस्थले जातः । एवंविधं शनि भौमो यदि पश्येत्तदा स्मशाने, एवं बुधो यदि पश्येत्तदा शिल्पीयगृहे चैत्यपुस्तककरवर्द्ध कि प्रभृतीनां गृहे, एवं गुरुः पश्येत्तदा वह्निगृहे रन्धनादिहोत्रादिगृहे, एवं शनि शुक्रो यदि पश्यति तदा वरे शुभस्थाने जन्माभूत् । 'पश्यत्याकि नृराशिस्थं सूर्यादौ चैत्यगोकुले' एवं पाठोऽप्यस्ति ।।६।। ___नरराशि (मिथुन, तुला, धन का पूर्वभाग और कुभ) के लग्न में रहे हुए शनि को रवि देखता हो तो देवालय, राजगृह या गोकुल में जन्म कहना। चन्द्रमा देखता हो तो श्रेष्ठ स्थान में, मंगल देखता हो तो श्मशान में, बुध देखता हो तो शिल्पी के घर, गुरु देखता हो तो अग्नि घर में और शुक्र देखता हो तो अच्छे सुन्दर घर में जन्म कहना ॥॥ अथ पितृगृह मातृगृहगत जन्माह पितृमातृगृहेऽक्यिों -बलिष्ठे चेन्दुशुक्रयोः । क्रमाज्जातः शुभै!चै-नदीकूपह्रदादिषु ॥१०॥ अर्कायों रविशन्योर्मध्यादेकतमे बलिष्ठे बलवति पितृगृहे पितृकापितृष्वसृप्रभृतीनां गृहे । वाथवा इन्दुशुक्रयोरेकतमे बलिष्ठे मातृष्वसृमातुलादिगृहे जातः क्रमात्कथनीयः । शुभग्रहैर्बहुवचनात् त्रिभिश्चतुभिर्वा नीचैर्नीचराशिस्थैर्नदीकूपह्रदपाश्र्वे जन्माभूत् ।।१०।। कुंडली में रवि या शनि बलवान् हो तो पिता के घर या पिता के भाई आदि के घर या पिता की बहन के घर जन्म कहना। यदि चन्द्रमा या शुक्र बलवान हो तो मासी या मामा के घर जन्म कहना। तीन या चार शुभ ग्रह नीच राशि के हों तो नदी कुनां या तलाब प्रादि के पास जन्म कहना ॥१०॥ अथान्धकारजन्माह सुखेऽब्जे चाकिभांशे वाकॊक्ष्ये साकौ तु वा झषे। कर्के वाथ तदन्त्यांशे वार्कादृष्टे तमस्यपि ॥११॥ अब्जे चन्द्र सुखे चतुर्थस्थाने सति, वाथवा चन्द्र आकिभांशे आकिः शनिरस्य यद्भ राशिर्मकरकुम्भौ तयोरेकतमांशस्थे यत्र तत्र राशी, वाथवार्कीक्ष्ये शनिदृष्टै चन्द्र, त्वथवा साकौं शनियुक्ते चन्द्र, अथवा चन्द्र झषे मीनगते कर्कस्थे, वा तदन्त्यांशे, अथ शब्दान्मीनकर्कयोरेकतमस्य । अन्त्यस्थेन नवमांशस्थे चन्द्र सति परमष्टसु योगेषु चन्द्रऽर्कादृष्टे रविणाप्यदृष्टे सति तमस्यन्धकारे जन्म । अपि शब्दाद् रविष्टे सप्रकाशे जन्माभूत् ।।११॥ लग्न में चौथे स्थान में चंद्रमा हो १, अथवा चंद्रमा मकर अथवा कुभ के नवांश में हो २, अथवा शनि चंद्रमा को देखता हो ३, अथवा शनि के साथ चंद्रमा रहा हो ४, अथवा चंद्रमा कर्क या मीन राशि का हो ५, अथवा कर्क या मीन के अन्तिम नवमांश में "Aho Shrutgyanam'
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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