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प्रथम कल्लोलः
बुधौ यथाक्रम समौजगौ समविषमराशिगौ यत्र तत्र स्थानगकुजदृष्टौ तदा क्लीबः । अथवाङ्गसितेन्दवः लग्नशुक्रचन्द्रन शे यत्र तत्र राशौ विषमांशगताः शास्त्रान्तराद् नरराशिस्था बुधार्किदृष्टा यदि स्युस्तदा क्लीब इति षष्ठो योगः । पूर्वोक्त योगानामेषां च सत्त्वे बलवत्त्वेन फलं वाच्यम् ।।१६।।
___ यदि विषम राशि में रहे हुए लग्न और चन्द्रमा को सम राशि में रहा हुअा मंगल देखता हो तो नपुसक योग होता है ॥४॥ अथवा सम राशि में रहा हुअा चन्द्र और विषम राशि में रहा हुअा बुध, इनको कहाँ भी रहा हुआ मंगल देखता हो तो नपुसक योग होता है ॥५॥ एवं लग्न शुक्र और चन्द्रमा ये विषम राशि में हों या विषम राशि के नवमांश में हों इनको बुध और शनि देखते हों तो नपुंसक योग होता है ॥१६॥
अथ द्विसम्भवयोगत्रयमाह
युग्मे सितेन्दू अङ्गन्दू पुग्रहेक्ष्यौ तु युग्मदौ ।
ज्ञाङ्गारेज्यसिताः पुंस्त्रीभस्थाः स्युमिथुनप्रदाः ॥१७॥ यदि शुक्रचन्द्रौ समराशिगतौ यद्वा लग्नचन्द्रौ पुग्रहेक्ष्यौ पुग्रहैरभौमगुरुभिष्टौ, अथवा तन्मध्ये बलिना एकेन दृष्टौ यदि तदा युग्मप्रदौ पुत्रपुत्रीप्रदौ । इति योगद्वयम् । ज्ञाङ्गारेज्यसिता बुधप्रश्नलग्नकुजगुरुशुक्रा विषमराशिगा: समराशिगाः । वा अथवा पुस्त्रियोर्यद्भ राशिद्विस्वभावराशिस्तत्रगाः सर्वे बलिष्ठा यदि, तदा मिथुनप्रदाः पुत्रपुत्रिकाप्रदा, इति तृतीययोगः ।।१७।। ___समराशि में रहे हुए शुक्र और चन्द्रमा को कोई पुरुष ग्रह (सूर्य, मंगल और गुरु) देखता हो तो दो संतान कहना १ एवं समराशि में रहे हए लग्न और चन्द्रमा को कोई पुरुष ग्रह देखता हो तो दो संतान कहना ।२। अथवा बुध लग्न मंगल, गुरु और शुक्र ये विषम राशि में हों तो दो पुत्र, समराशि में हों तो दो कन्या और द्विस्वभाव राशि में हो तो दो संतान एक पुत्र और एक पुत्री कहना ॥१७॥
प्रथ त्रिसम्भवयोगचतुष्टयमाह
ज्ञः पश्येत् मिथुनांशस्थो द्वयङ्गांशस्थान् ग्रहोदयान् ।
गर्भे सुतैका पुत्रौ द्वौ वा स्न्यंशस्थः सुतः सुते ॥१८॥ ज्ञो बुधो यत्र तत्र राशौ मिथुनांशस्थो ग्रहोदयान् सर्वान् द्वयङ्गांशस्थान् द्विस्वभावराशिनवांशगान् यदि पश्येत्, तदा गर्भे सुता एका द्वौ पुत्रौ तिष्ठतः । वा अथवा स्त्र्यंशस्थः कन्यानवांशस्थो बुधो द्वयङ्गांशस्थान ग्रहोदयान पूर्वोक्तान् यदि पश्येत् तदा सुत एकः सुते द्वे वाच्ये ।।१८॥
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